Book Title: Vipashyana Shu Che
Author(s): Amarendravijay
Publisher: Gyanjyot Foundation

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Page 12
________________ શુદ્ધ ધર્મમાર્ગ धर्म धर्म तो सब कहे, पर समजे ना कोय; निर्मल मन का आचरन, धर्म कहिजे सोय. धरम न हिंद बौद्ध है, धरम न मुस्लिम जैन; धरम चित्त की शुद्धता, धरम शांति, सुख, चैन मैला मन चंचल रहे. रहे व्यथा से चूर; मन निर्मल हो जाय तो, शांति भरे भरपूर. जिस पथ पर चलते हुवे, मन निर्मल हो जाय; वह पथ ही कल्याण पथ, धर्म पंथ कहलाय. यही धरम की परख है, यही धरम का माप; जीवन में धारण किये, दूर होय संताप. सुखदुःख दोनों एकसे, मान और अपमान; जिस दिन यह समता मिले, उस दिन ही कल्याण. सुख आए नाचे नहीं, दुःख आए नहीं रोय; ऐसा समतावान ही, धर्म विहारी होय. समता चित्त का धरम है, स्थिर स्वधर्म हो जाय; तो जीवन सुख शांति से, मंगल से भर जाय. अंतर की आंखें खले, प्रज्ञा जागे अनंत; विपश्यना के तेज से, पिघले दुःख तुरंत. दुर्लभ जीवन मनुज का, दुर्लभ संत मिलाप; धन्यभाग दोंनो मिले, दूर करे भवताप. * विपश्यनाचार्य श्री गोय-519त 'दोहे धरम के' माथी संऽदित.

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