Book Title: Vipak Sutra Ek Parichay Author(s): Jambukumar Jain Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 3
________________ ६. नन्दिवर्द्धन ६.धनपति ७. उम्बरदत्त ७. महाबल कुमार ८.शौरिकदत्त ८. भद्रनंदी कुमार ९. देवदत्त ९. महाचन्द्र कुमार १० अंजू १०. वरदत्त कुमार दुःखविपाक इसमें कुल १० अध्ययन है। इसमें पहला अध्ययन ही विस्तृत है, शेष संक्षिप्त हैं। प्रथम अध्ययन में मृगापुत्र का वर्णन है। मृगापुत्र जन्म से ही अंधा, बहरा, लूला, लंगड़ा और हुंडक संस्थानी था। उसके शरीर में कान, नाक, ऑख, हाथ, पैर आदि अवयवों का अभाव था, मात्र उनके निशान थे। वह जो भी आहार लेता वह भस्मक व्याधि के प्रभाव से तत्काल हजम हो जाता तथा तुरन्त ही रुधिर और मवाद के रूप में बदल जाता था। उसकी इस बीभत्स दशा के संबंध में गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से जिज्ञासा की। भगवान महावीर ने उत्तर में फरमाया कि पूर्वजन्म में वह विजयवर्द्धमान नामक खेट का शासक इक्काई नामक राष्ट्रकूट(प्रान्ताधिपति) था। वह अत्यन्त अधर्मी, अधर्मदर्शी, अधर्माचारी था। उसे प्रजा को दुःख देने में आनन्द आता था। वह रिश्वतखोर था तथा निरपराधी जनों को तंग करता था। रात-दिन पापकृत्यों में लीन रहता था। इन कृत्यों का तात्कालिक फल यह हुआ कि उसके शरीर में सोलह महाकष्टदायी रोग उत्पन्न हो गएँ वह दु:ख भोगता हुआ अन्त समय में मरकर प्रथम नारकी में उत्पन्न हुआ। वहाँ दारुण वेदनाएँ भोगकर आयु पूर्ण होने पर यहाँ मृगाराणी की कुक्षि से मृगापुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ है। आगे भी वह अनेक भवों में दु:ख भोगता हुआ अन्त में मनुष्य भव प्राप्त कर संयम की साधना कर मुक्त होगा। द्वितीय अध्ययन में उज्झितक द्वारा पूर्वभव में पशुओं को अनेक प्रकार के कष्ट देने, मांस, मदिरा का सेवन करने तथा वर्तमान भव में जुआ खेलने, शराब सेवन करने, चोरी करने तथा वेश्यागमन के कारण शूली पर चढ़ने का वर्णन है। तृतीय अध्ययन में अभग्नसेन द्वारा पूर्वभवों में अण्डों का व्यापार करने, उन्हें भूनकर खाने के कारण वर्तमान भव में विवश होकर अपना ही मांस खाने, अपना ही रुधिर पीने तथा सरेआम फांसी पर चढ़ने का वर्णन है। चतुर्थ अध्ययन में शकटकुमार द्वारा पूर्वभव में पशुओं का मांस बेचने तथा वर्तमान भव में वेश्यागमन एवं परस्त्रीगमन के कारण तृतीय अध्ययन के समान ही कष्ट भोगने का वर्णन है। पाँचवें अध्ययन में बृहस्पतिदत्त का वर्णन है। पूर्वभवों में ब्राह्मणों की बलि चढ़ाने तथा वर्तमान भव में परस्त्रीगमन के कारण बृहस्पतिदत्त को घोर कष्ट उठाने पड़े तथा शूली पर चढ़ाया गया है। छठे अध्ययन में नंदीवर्द्धन द्वारा पूर्वभवों में जेलर के पट पर रहते हुए कैदियों को यातनाएँ देने तथा वर्तमान भव में राज्यलिप्सा के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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