Book Title: Vipak Sutra Ek Parichay
Author(s): Jambukumar Jain
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 6
________________ 240 जिनवाणी- जैनागम- गाविसमा के - इस तरह से विपाक श्रुत का अध्ययन करने से हमें यह जानकारी प्राप्त होती है कि किस प्रकार जीव दुष्कृत करने से दारुण वेदनाएँ भोगता है तथा सुकृत करने से अपार सुखोपभोग को प्राप्त करता है। हमें किन प्रवृत्तियों से बचना चाहिए तथा किन प्रवृत्तियों को अपनाना चाहिए। अगर हम सुख चाहते है तो अपना जीवन दूसरों की भलाई, कल्याण एवं परोपकार में लगाएं स्वयं वीनराग धर्म का आराधन कर इस मानव जन्म को सफल व सार्थक बनाएँ जीवन की सफलता सुख भोग में नहीं, भोगों के त्याग में है, इस तथ्य को सदैव स्मरण रखें। -112/303, अग्रवाल फार्म, मानसरोवर, जयपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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