Book Title: Vipak Sutra Ek Parichay Author(s): Jambukumar Jain Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 2
________________ जिनवाणी- जैनागम साहित्य विशेषाङ्क विक सूत्र के प्रत्येक अध्ययन में पुर्नजन्म की चर्चा है। संसार में कोई व्यक्ति दुःख से पीड़ित है तो कोई सुखसागर में तैरता दिखाई देता है। ऐसा क्यों होता है, इसी को विपाकसूत्र में सम्यक् रूपेण समझाया गया है। जो अन्याय, अत्याचार, मांसभक्षण, वेश्यागमन करता है तथा दीन-दुखियों को पीड़ित करता है उसके द्वारा विभिन्न प्रकार की यातनाएँ एवं महादुःख भोगा जाता है, इसका वर्णन इस सूत्र में किया गया है। इसे दुःखविपाक के नाम से जाना जाता है। सुखविपाक में सुपात्रदानादि का प्रतिफल सुख बताया गया है । इस आगम में पाप और पुण्य की गुरु ग्रन्थियों को सरल उदाहरणों द्वारा उद्घाटित किया गया है। जिन जीवों ने पूर्वभवों में विविध पापकृत्य किए, उन्हें आगामी जीवन में दारुण वेदनाएँ प्राप्त हुई, दुःख विपाक में ऐसे ही पापकृत्य करने वाले जीवों का वर्णन है और जिन्होंने पूर्वभव में सुकृत किए, उन्हें फलरूप में सुख उपलब्ध हुआ, सुख विपाक में ऐसे ही जीवों का वर्णन है। 236 रचनाकाल - इसकी रचना कब हुई, इसका कोई स्पष्ट उल्लेख उपलब्ध नहीं होता है। समवायांग के पचपनवें समवाय में भगवान महावीर द्वारा अंतिम समय में पुण्य कर्मफल तथा पापकर्मफल को प्रदर्शित करने वाले पचपन - पचपन अध्ययन धर्मदेशना के रूप में प्रदान करने का उल्लेख है। कई चिन्तक यह मानते हैं कि यह वही विपाक सूत्र है जो आज उपलब्ध हैं, अब इसके पैतालीस - पैंतालीस अध्ययन विस्मृत हो गये हैं, किन्तु यह मन्तव्य किसी भी दृष्टि से युक्ति संगत नहीं बैठता है । नन्दीसूत्र में विपाक सूत्र के बीस अध्ययनों का उल्लेख मिलता है, किन्तु वर्तमान में इसका बहुत बड़ा भाग विस्मृत हो गया है तथा इसका आकार काफी छोटा हो गया है। वर्तमान में छोटे आकार के बीस अध्ययन वाला विपाक सूत्र ही उपलब्ध है। ये अध्ययन छोटे-छोटे होने पर भी बड़े ही रोचक, प्रेरणास्पद एवं हृदय को छूने वाले हैं। इन अध्ययनों को पढ़कर मुमुक्षु साधक अपने को पापकर्मों से बचाकर शुभ कर्मों में लगा सकता है तथा अपना मानव जीवन सफल कर सकता है। यह सूत्र १२१६ श्लोक प्रमाण है। विषयवस्तु - विपाक सूत्र के दो श्रुतस्कन्ध हैं- १. दुःखविणक और २. सुख विपाक । इनमें प्रत्येक में १०-१० अध्ययन हैं, जो निम्न प्रकार हैं दुःखविपाक के अध्ययन सुःखविपाक के अध्ययन १. सुबाहुकुमार २. भद्रनंदी २. मृगापुत्र २. उज्झितक ३. अभग्नसेन ४. शकट ५. बृहस्पतिदन Jain Education International ३. सुजातकुमार ४. सुवासव कुमार .जिनदास कुमार . با For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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