Book Title: Vikramaditya ki Aetihasikta Jain Sahitya ke Sandarbh me Author(s): Sagarmal Jain Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 6
________________ १२२ अनुसन्धान-५७ सेअरूल ओकूल (पृ. ३१५) का दिया था - जिसमें विकरमतुन के उल्लेख पूर्वक विक्रम की यशोगाथा वर्णित है । इस ग्रन्थका काल विक्रम संवत् की चौथी-पाचवी शती है । यह हिजरी सन् से १६५ वर्ष पूर्व की घटना है। इस प्रकार विक्रमादित्य (प्रथम) को मात्र काल्पनिक व्यक्ति नहीं कहा जा सकता है । मेरी दृष्टि में गर्दभिल्ल के पुत्र एवं शकशाही से उज्जैनी के शासन पर पुनः अधिकार करने वाले विक्रमादित्य एक ऐतिहासिक व्यक्ति है, इसे नकारा नहीं जा सकता है । उन्होंने मालव गण के सहयोग से उज्जैनी पर अधिकार किया था । यही कारण है कि यह प्रान्त आज भी मालव देश कहा जाता है । (१३) जैनपरम्परा में विक्रमादित्य के चरित्र को लेकर जो विपुल साहित्य रचा गया है, वह भी इस तथ्य की पुष्टि करता है कि किसी न किसी रूप विक्रमादित्य (प्रथम) का अस्तित्व अवश्य रहा है । विक्रमादित्य के कथानक को लेकर जैन परम्परा में निम्न ग्रन्थ रहा है। विक्रमादित्यके कथानक को लेकर जैन परम्परा में निम्न ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं - (१) विक्रमचरित्र - यह ग्रन्थ काशहृदगच्छ के देवचन्द्र के शिष्य देवमूर्ति द्वारा लिखा गया है । इसकी एक प्रतिलिपि में प्रतिलिपि लेखन संवत् १४९२ उल्लेखित है, इससे यह सिद्ध होता है यह रचना उसके पूर्व की है। इस ग्रन्थ का एक अन्य नाम सिंहासनद्वात्रिंशिका भी है। इसका ग्रन्थ परिमाण ५३०० है। कृति संस्कृत में है। (२) विक्रमाचरित्र नामक एक अन्य कृति भी उपलब्ध है । इसके कर्ता पं. सोमसूरि है । ग्रन्थ परिमाण ६००० है । विक्रमचरित्र नामक तीसरी कृति साधुरत्न के शिष्य राजमेरु द्वारा संस्कृत गद्य में लिखी गई है । इसका रचनाकाल वि.सं. १५७९ है। (४) विक्रमादित्य के चरित्र से सम्बन्धित चौथी कृति 'पञ्चदण्डातपत्र छत्र प्रबन्ध नामक है। यह कृति सार्धपूर्णिमा गच्छ के अभयदेवPage Navigation
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