Book Title: Vikramaditya ki Aetihasikta Jain Sahitya ke Sandarbh me Author(s): Sagarmal Jain Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ डिसेम्बर २०११ ११७ विक्रमादित्य की ऐतिहासिकता जैनसाहित्य के सन्दर्भ में - डॉ. सागरमल जैन भारतीय इतिहास में अवन्तिकाधिपति विक्रमादित्य का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है । मात्र यही नहीं, उनके नाम पर प्रचलित विक्रम संवत का प्रचलन भी लगभग सम्पूर्ण देश में है। लोकानुश्रुतिओ में भी उनका इतिवृत्त बहुचर्चित है। परवर्ती काल के शताधिक ग्रन्थो में उनका इतिवृत्त उल्लेखित है । फिरभी उनकी ऐतिहासिकता को लेकर इतिहासज्ञ आज भी किसी निर्णयात्मक स्थिति में नहीं पहुंच पा रहे है। इसके कुछ कारण है- प्रथम तो यह कि विक्रमादित्य बिरुद के धारक अनेक राजा हुए है अतः उनमें से कौन विक्रम संवत का प्रवर्तक है, यह निर्णय करना कठिन है, क्योंकि वे सभी ईसा की चौथी शताब्दी के या उसके भी परवर्ती है । दूसरे विक्रमादित्य मात्र उनका एक बिरुद है, वास्तविक नाम नहीं है । दूसरे विक्रमसंवत के प्रवर्तक विक्रमादित्य का कोईभी अभिलेखीय साक्ष्य ९वीं शती से पूर्व का नहीं है । विक्रम संवत के स्पष्ट उल्लेख पूर्वक जो अभिलेखीय साक्ष्य है वह ई. सन् ८४१ (विक्रमसंवत् ८९८) का है। उसके पूर्व के अभिलेखो में यह कृतसंवत या मालव संवतके नाम से ही उल्लेखित है । तीसरे विक्रमादित्य के जो नवरत्न माने जाते है, वे भी ऐतिहासिक दृष्टि से विभिन्न कालों के व्यक्ति है। विक्रमादित्य के नाम का उल्लेख करनेवाली हाल की गाथासप्तशती की एक गाथा को छोड़कर कोईभी साहित्यिक साक्ष्य नवीं-दसवीं शती के पूर्व का नहीं है । विक्रमादित्य के जीवनवृत्तका उल्लेख करनेवाले शताधिक ग्रन्थ है, जिनमें पचास से अधिक कृतियाँ तो जैनाचार्यों द्वारा रचित है। उनमें कुछ ग्रन्थो को छोड़कर लगभग सभी बारहवीं-तेरहवीं शती के या उससे भी परवर्ती कालके है । यही कारण है कि इतिहासज्ञ उनके अस्तित्व के सम्बन्ध में सन्दिग्ध है। किन्तु जैन स्रोतों से इस सम्बन्ध में विक्रमादित्य जो सूचनाएँ उपलब्धPage Navigation
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