Book Title: Vikramaditya ki Aetihasikta Jain Sahitya ke Sandarbh me Author(s): Sagarmal Jain Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ १२० अनुसन्धान-५७ में सातवाहनवंशी राजा हाल ने संकलित किया था उसमें विक्रमादित्य की दानशीलता का स्पष्ट उल्लेख है । यह उल्लेख चन्द्रगुप्त (द्वितीय) विक्रमादित्य के सम्बन्ध में या उससे परवर्ती अन्य विक्रमादित्य उपाधिधारी किसी राजा के सम्बन्ध में नहीं हो सकता है, क्योंकि वे इस संकलन से परवर्ती काल में हुए है अतः विक्रम संवत् की प्रथम शती से पूर्व कोई अवन्ती का विक्रमादित्य नामक राजा हुआ है यह मानना होगा । यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि विक्रमादित्य हाल के किसी पूर्वज सातवाहन वंशी राजा से युद्धक्षेत्र में आहत होकर मृत्यु को प्राप्त हुए थे । वह गाथा निम्न है संवाहणसुहरसतोसिएण, देन्तेण तुह करे लक्खं । चलणेण विक्कमाइच्च चरिअमणुसिक्खिअं तिस्सा | गाथा सप्तशती ४६४ सातवाहनवंशी राजा हाल के समकालीन गुणाढ्य ने पैशाची प्राकृत में बृहत्कथा की रचना की थी । उसी आधार पर सोमदेव भट्टने संस्कृत में कथासरित्सागर की रचना की - उसमें भी विक्रमादित्य के विशिष्ट गुणों का उल्लेख है (देखें - लम्बक ६ तरङ्ग १ तथा सम्बक १८ तङ्ग १) (५) भविष्यपुराण और स्कन्दपुराण में भी विक्रम का जो उल्लेख है, वह नितान्त काल्पनिक है - ऐसा नहीं कहा जा सकता है । भविष्यपुराण खण्ड २ अध्याय २३ में जो विक्रमादित्य का इतिवृत्त दिया गया है वह लोकपरम्परा के अनुसार विक्रमादित्य को भर्तृहरि का भाई बताती है तथा उनका जन्म शकों के विनाशार्थ हुआ ऐसा उल्लेख करता है । अत: इस साक्ष्य को पूर्णतः नकारा नहीं जा सकता है । (६) गुणाढ्य (ई.सन् ७८ ) द्वारा रचित बृहत्कथा के आधार पर क्षेमेन्द्र द्वारा रचित बृहत्कथा मञ्जरी में भी विक्रमादित्य का उल्लेख है । उसमें भी म्लेच्छ, यवन, शकादि को पराजित करनेवाले एक शासक के रूप में विक्रमादित्य का निर्देश किया गया है । (७) श्री भागवत स्कन्ध १२ अध्याय १ में जो राजाओं की वंशावली दीPage Navigation
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