Book Title: Vijaychandchariyam
Author(s): Chandrashi Mahattar, Jitendra B Shah
Publisher: Shrutratnakar Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ ॐ नमः सर्वज्ञाय ॥ अट्टप्पगारिपूजोवरि अट्ठदिट्टंतजुत्तं सिरिविजयचंदकेवलीचरियं ॥ आर्या सैयलसुरासुरकिंनरविज्जाहरनरवरिन्दथुअचलणं । जच्चसुवन्नसरीरं पणमह वीरं महावीरं ॥ १ ॥ कमलासने निसन्नं कमलमुहं कमलगब्भसमवन्नं । भुवनजणजणियतोसं जिनवाणि नमह भत्तीए ॥२॥ ★ प्रत्यन्तरे एतानि षट् श्लोकानि मङ्गलाचरणविषये सन्ति तानि इमानि - पणमहतं नाभिसुयं सुरवइसंकंतलोयणसहस्सं । कमकमलं व विरायइ नहसिद्धे जस्स पयजुयले ॥१॥ नमिय सुरासुरसुंदरिभालयलगलंतकुसुमकयपूयं । पणमह जयसिरिनिलयं सेसजिणाणं च पयकमलं ॥२॥ विहडियकम्मकलंकं कयकेवलतेयतिहुयणुज्जोयं । सुरनरकुमुयाणंदं नमह सया वीरजिणइंदं ||३|| नमह सुरासुरमहिए सिद्धे नीसेसकम्ममलरहिए । निम्मलनाणसंसिद्धे सिद्धिहसासयं पत्ते || ४ | जीइपसायसमीरणसमाहयंगलइमेहविंदं च । अन्नाणं जीवाणं तं नमह सरस्सइं देवि ॥५॥ निसुणउ सुयणो तह दुज्जणो उ गुणदोसग्गहणकयचित्तो । सिरिविजयचंदचरियं परितुट्ठनिबंधणं भणिमो ||६|| Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 218