Book Title: Vihar Varnan
Author(s): Jayantvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 131
________________ साडे बाराना देरापर पासेना उपाश्रयमां उतर्या. मंदलोर, ग्वालियर स्टेटना माळवा प्रांतनो एक जील्लो छे. गाम प्राचीन अने सारं छे. स्टेशन, बजार अने जूनो किल्लो विगेरे छे. मा० नं. १३० पासे डाकबंगलो छे भगवान् श्रीमहावीरस्वामीना समयमां सिंधुसौवीर देशना वीतभयनगरना उदायन राजाए उज्जयिनी नगरीना राना चंडप्रद्योत ऊपर चढाइ करी तेने जीती पकडी केद करी तेने साथे लइने पोताना देश तरफ पाछा फरतां चोमासु बेसवाथी जंगलमा दशपुर नामर्नु नगर वसावीने त्यां रह्या (जे दशपुर हाल मंदसोरना नामथी प्रसिद्ध छे. ) उदायन रानाए पोते जैन होवाथी सांव-सरिक ( पर्युषणा ) पर्वने दिवसे चंडप्रद्योते उपवास करवाथी स्वधर्मी जाणी तेने अहिंथीन छोडी मूक्यो राजा चंडप्रद्योते आ गामने जिनमंदिरना निभाव खर्च माटे अर्पण कर्यु. मंदसोरथी बे माइल दूर अने महु-नीमच रोड मा० नं० १३०-२ पासेथी एक माइल दूर सोंदनी गाम पासेना एक क्षेत्रमां यशोधर्म राजाना मोटा बे कीर्तिस्तंभो जमीनमाथी नीकळेला पड्या छे. प्रत्येक स्तंभ एकन पथ्थरनो बनेलो, चालीश फुट उंचो अने तेना प्रमाणमां पहोळो छे, तेना ऊपर १४०० वर्ष पहेलांनो लेख छे. मंदसोर १२ परांओथी वहेचायेलुं छे. तेमांथी चार परां अने एक शहेर मळीने पांच परां ओमां श्रावकनी वस्ती अने देरासर विगेरे छे. (१) शहेरमां श्रा, घर ७०, देरा० ३, उपा० २, ओसवाल-पोरवालनी हवेलीओ २ अने एक नानो पुस्तकभंडार छे. आत्मानंद जैनपाठशाला हाल बंध छे. आ० गृ० १ शेठ फूलचंदनी सुराणा, २ शेठ इन्द्रमलजी खीमसरा. (२) नयापुरामां श्रा० घर , देरा० १, उपा० १ अने दादाजीनी छत्री तथा बगीचो छे. (३) जनकुपरामां श्रा० घर ११०, देरा० १ अने श्रीनायकविजयजीनी पौषधशालापां श्री पद्मावतीनी- देरा० १ छे. राजेन्द्रविलास नामनुं भवन बन छे, तेमां राजेन्द्रसूरिनी छत्री छे जैनपाठशाला १ छे. जनकुपुरामांना श्रावकोनां लगभग बधां घर त्रण थुई आम्नायने माननारों छे.' (४ : खानपुरामां श्रा. घर १०, देरा० १ अने नानो उपाश्रय १ छे.(१) खिलचीपुरामां श्रा. घर ४ अने देरासर १ छे मंदसोर शहेरना जैन आगेवानोमां दम नथी, संघमां निर्नायकता छे. मुनिराजोने आवता जतां मार्गमा मात्र विश्रान्ति लेवा लायक क्षेत्र छे. शहेर अने परांओमां थइने मंदसोरमां स्था० वा० नां घ. १५०, दिगं० नां: घा १०० तेमनां मंदिर ३ अने चैत्यालग २ छे. मंदपोरथी बइ पार्श्वनाथ लग० ८ 16

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