Book Title: Vigay Nivayata Vivaran
Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ सप्टेम्बर २०१० ६७ ॥ अथ दहीके ५ निवायते लिखें हैं ॥ कूरमांहि दधि भेलकै, भक्ष्यण२३ कर अविलंब, निवायतौ दघिनौ प्रथम, नामें दहीं करंब२४ हस्तमथित रस मधुरयुत, जो दधि कियो तयार दूजो दही निवायतो, नाम शिखरणी२५ सार वडे२६ सहित दधिकू कह्यो, घोलवडा इण नाम, कपडछाण दधिनें सुण्यो, घोल२७ नाम गुणधाम लूण भिल्यौ करसें मिल्यौ, किसमिस प्रमुख मिलाय, दही तणौ ए रायतौ, दधिरायतौ कहाय ॥ अथ घी के ५ निवायते कहे छे । कृतपकवान अनंतरै, जल्यौ रहयौ घृत शेष, निर्भजन२८ नामें कहयो, धृतनौ भेद विशेष घृतनौ द्वितिय निवायतौ, विस्पंदन२९ अभिधान, छाछमांहि कण घी तणा, ग्रहण करौ पहिचान घृतपक औषधि उपरै, घृततिर बालै रूप, सर्पि इसै नामें सुण्यौ, पपडी तणे स्वरूप किट्टक° घृतनौ मेल है, घृतमल कहियै तेण पांचूं घृतमाहे अधम, भक्ष्याण कीयौ केण औषधिपुट देणै करी, औषधिको घी होय, तेहनै कहियै पक्वघृत२९, घृतको स्वाद न कोय ॥ अथ तेलका ५ निवायते लिख्यते ॥ तिलमलिका नामें कहयौ, तेल तणौ जे मेल, तिलकुटी(ट्टी) तिल कूटकै, मांहे मीठो भेल दग्ध तैल घृतनी परै, निर्भजन कह्यो तेह, पक्वोषधि ऊपरि रहै, नामें तरिका नेह लक्ष ओषधी भेलकै, तेल कियौ जु तयार, लक्षपाक२२ नांमै कयों, सर्व रोग उपचार

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7