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सप्टेम्बर २०१०
मुनि वच्छराजकृत विगय-निवायता विवरण [ सज्झाय]
जैन धार्मिक आहार अने तेना त्यागनी मर्यादानुं वर्णन करतां प्रकरण ग्रन्थोमां जे ग्रन्थनी गणना थाय छे तेवा "पच्चक्खाणभाष्य" नामना ग्रन्थमां ग्रन्थकारे १. पच्चक्खाणप्रकार, २. विधि, ३. आहार, ४. आगार, ५. विगय, ६. नीवियाता, ७. भांगा, ८. शुद्धि, ९. फल आम पच्चक्खाण सम्बन्धि नव द्वारो वर्णव्यां छे. ते ९ द्वारोमां इन्द्रियने तथा चित्तने विकार उत्पन्न करनारी ४ महाविगय अने ६ सामान्य विगय एम बे भेदे विगय विगयद्वारमां वर्णवी छे. तेमज (चार महाविगय सिवायनी) अन्य द्रव्यथी हणायेली एवी ६ सामान्यविगय के जे नीवियाती कहेवाय छे ते छठ्ठा नीवियातां द्वारमां कहेवायेली छे. तेमां ६ सामान्य विगयना दरेकना ५-५ एम कुल ३० नीवियातां ग्रन्थकारे वर्णव्यां छे.
सं. मुनिसुयशचन्द्रविजय मुनि सुजसचन्द्रविजय
प्रस्तुत कृतिमां कविए उपरनां (५-६ ) बन्ने द्वारोना पदार्थने हिन्दी पद्यरूपे खुब ज सुन्दर रीते रजू कर्या छे. कवि श्री वच्छराजमुनि वड खरतरगच्छशाखामां थयेला जिनहर्षसूरिजीना शिष्य आनन्दरत्नगणीना शिष्य छे. नन्नीबीकी श्राविकाना आग्रहथी सं. १८८७ मां तेमणे आ कृतिनी रचना करी छे. तथा सं. १९०८ मां कर्ता ए ज पोते आ प्रत तपस्वी मोहन (मुनि ?) माटे लखी छे.
१.
|दैन = दैन्य- दीनता
२. दुखदार = दुखनुं द्वार
६३
प्रत शुद्ध छे. (प्रतना अन्त्यभागमां माणेकमुनि कृत “मौन एकादशीनमस्कार” नामनी कृति छे.) प्रत आपवा बदल श्री आत्मानन्द जैन सभाना व्यवस्थापकोनो खुब खुब आभार.
शब्द कोश
३.
४.
ठान = थान =
छेली = बकरी
स्तन(?)
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अनुसन्धान ५२
५. भेड = घेटी
२२. शालकणा = चोखाना कण ६. फुन = पुनः = फरीथी २३. भक्ष्यण = भोजन ७. सरसुं = सरसव
२४. करंब = भातमां दही नांखी तैयार ८. अलसीय = अळसी
करेली वानगी ९. करड = कसुंबीना घासनुं ? २५. शिखरणी = श्रीखंड १०. काठा = कठण, पिंड २६. वडे = वडा ११. छार = चार
२७. घोल = घोळवू १२. मरकी(क्खी) = मांखी ? २८. निर्भंजन = पक्वान्न तल्या बाद १३. कुतरिक = कुंतिया
वधेलु घी/तेल १४. काष्टादिक = वनस्पति आदिनी २९. विस्पंदन = छासमां देखाता घीना १५. पिष्ट = लोट
कण १६. हिआन =
३०. किट्टक = उकळला घी पर तरी १७. ईस = आनी
आवतो मेल १८. पयसाडी = द्राक्ष आदि वस्तु ३१. पक्वघृत = आमळा वगेरे औषधि साथे रांधेलुं दूध
नाखी पकवेल घी १९. पेय = अल्प चोखा सहित रांधेलु ३२. लक्षपाक = लाख औषधि नाखी दूध
पकलेव तेल २०. अवलेहि = चोखानो लोट नाखी ३३. गुलवाणी = गोलनुं पाणी रांधेलुं दूध
३४. पात = गोळनी चांसणी/पड ? २१. दुग्धाटी == खाटा पदार्थ साथे ३५. कडाविगय = तळेली वस्तु रांधेलुं दूध
३६. चीलडा = टींकडा, पूडा ३७. पुवा = पूडलो
एँ नमः
॥ विगय-निवायता विवरण ॥ अहँ नमः ॥ श्रीसिद्धचक्राय नमः ॥
चरणांबुज गुरुदेव नमि, कर समरण मन ध्यान, विगत विगय दशकी लिखुं, भविजन करण कल्याण
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मनविकारकारक सदा, दुर्गति दैन' निदान, कारन ये जिनराजनें, कही विगय दश जान
॥ अथ १० विगय नाम ॥ प्रथम दूध दूजी दही', तीजी घीयवखान, तुर्य तेल गुड५ पंचमी, छठ्ठी जाण पकवान मधु सातमी आठमी सुरा", नवमी मांस कहंत, दसमी मांखण१० जाणियो, ए विगइ दश हुंत प्रथम विगइ छ भक्ष है, अभक्ष अंतकी चार, इस प्रकार इनकुं कही, महाविगइ दुखदार भेद पांच है दूधके, गाय-भैसका ठानरे, उंठ(ट)णि छेली भेडका', दूध पंच ए जांण दही भेद फुनर्प च्यार है, भेंस गायका मान, बकरी भेडीका सही, ए दधि च्यार सुजांण भेद च्यार घीके सुनौ, गो महिषीका धार, छेरी भेडीका कहा, घृत ए च्यार प्रकार होय न दधि-घत उंटणी-पयसें ए निरधार, कारन दधि-घृत च्यार है, जाणौ एह विचार तेल भेद पिण च्यार है, तिल सरसुं अलसीय, करड तेल चोथो गिणो, अवर विगय नहि कीय जान भेद गुडके सुगुन ! पतला काठा१० दोय भेद दोय पकवानके, घीय तेलका होय भक्ष विगयके भेद ए, जिन आगम विसतार, अभक्ष विगयके भेद अब, सुणो भविका दो छार.११ । त्रिविध मधु शास्त्रै कही, मरकी१२(मक्खी?) भमरी सोय, तीजी कुतरिक'३ जानियो, सहित भेद ए जोय मदिरा भेद फुन दोय है, काष्टादिककी१४ जान, दूजी पिष्टोद्भव१५ कही, जांणो मदिरा मांन मांस भेद ए तीन सुण, जल-थल-खचर हिआन१६, मच्छ हिरन चटिका कही, अनुक्रम एह पिछान
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अनुसन्धान ५२
॥ छन्द सोरठा ॥ माखन भेदे च्यार, गाय-भैंसका ए सही, छेली भरडी (भेडी) होय, ए विध माखणकी कही विगय अभक्ष ए च्यार, जिनवर स्वयं मुखसे कही, तजो दूर भवि एह, दुरगतिदायक ये सही
॥ अथ ३० निवायते लिख्यते ॥
॥ दोहा ॥ विगय तजै तजियै सही, जब निवयाते तीस, तजे जाय नहि मन अथिर, कर जयणा मन ईस१७ विगय पुद्गल द्रव्यसुं, हणे जा(जी?)य मुनिभाख, या कारण निवियायतें, दोष अल्पतर दाख मेवाजात जु सर्वही, जाण विगयका सार, विन रक्खें नहि लीजिय, निवयाते निरधार भक्ष्यविगयके निवायते, है संख्यायें तीस, तामें पयके पांच है, विवरण कहा जगीश पहिलो पयसाडी१८ कह्यो, खीर पेय१९ अवलेहि२०, दुग्घाटी२१ है पांचमौ, कर विचार सबलेहि
॥ ए ५ का अर्थ लिखै है ॥ करै गरम अत्यंत पय, अरे द्राख-बदाम रबडी रूपें दूध तें, पयसाडी इण नाम चावल बहुत मिलायकै, करै दूधनी खीर, तिनहिज नाम निवायतौ, तजत मिलत भवतीर सवा सेर पयमें धरै, शालकणा२२ केइ लेय, क्षीर नही पिण क्षीर सम, तीजौ नांमें पेय अग्नि पकै जिण दूधमें, चावल चूर्ण मिलाय, निवायतौ अवलेहिका, चौथो दियो बताय तक्र मिल्यो पय होत है, आमलरस संयुक्त, दुग्घाटी पहिचानकै, भोजन अवसर भुक्त
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॥ अथ दहीके ५ निवायते लिखें हैं ॥ कूरमांहि दधि भेलकै, भक्ष्यण२३ कर अविलंब, निवायतौ दघिनौ प्रथम, नामें दहीं करंब२४ हस्तमथित रस मधुरयुत, जो दधि कियो तयार दूजो दही निवायतो, नाम शिखरणी२५ सार वडे२६ सहित दधिकू कह्यो, घोलवडा इण नाम, कपडछाण दधिनें सुण्यो, घोल२७ नाम गुणधाम लूण भिल्यौ करसें मिल्यौ, किसमिस प्रमुख मिलाय, दही तणौ ए रायतौ, दधिरायतौ कहाय
॥ अथ घी के ५ निवायते कहे छे । कृतपकवान अनंतरै, जल्यौ रहयौ घृत शेष, निर्भजन२८ नामें कहयो, धृतनौ भेद विशेष घृतनौ द्वितिय निवायतौ, विस्पंदन२९ अभिधान, छाछमांहि कण घी तणा, ग्रहण करौ पहिचान घृतपक औषधि उपरै, घृततिर बालै रूप, सर्पि इसै नामें सुण्यौ, पपडी तणे स्वरूप किट्टक° घृतनौ मेल है, घृतमल कहियै तेण पांचूं घृतमाहे अधम, भक्ष्याण कीयौ केण
औषधिपुट देणै करी, औषधिको घी होय, तेहनै कहियै पक्वघृत२९, घृतको स्वाद न कोय
॥ अथ तेलका ५ निवायते लिख्यते ॥ तिलमलिका नामें कहयौ, तेल तणौ जे मेल, तिलकुटी(ट्टी) तिल कूटकै, मांहे मीठो भेल दग्ध तैल घृतनी परै, निर्भजन कह्यो तेह, पक्वोषधि ऊपरि रहै, नामें तरिका नेह लक्ष ओषधी भेलकै, तेल कियौ जु तयार, लक्षपाक२२ नांमै कयों, सर्व रोग उपचार
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अनुसन्धान ५२
॥ अथ गुडके ५ निवायते ॥ अर्द्धपक्वै जो इक्षुरस, रबडी रूप निहाल, तेहनें कहियै इक्षुरस, मधुर विगयकी चाल दूजौ गुलवाणी३३ कह्यौ, त्रीजौ साकर सिद्ध, निवायतौ मीठै तणों, चौथौ खांड प्रसिद्ध हरकिणहीकै उपरै, पात३४ लपैटै जेह, । तेहने कहिये पाकगुल, खुरमां द्रष्टांते तेह
॥ अथ पकवानके ५ निवायते लिख्यते ॥ घृतमें तिलमें नीकल्यो, विगय आदिकौ घाण, दूजो घाण निवायतौ, कडाविगयकौ३५ जांण तीन घाण निकल्या पछै, जो हुवै पकवान, दूजौ नाम निवायतौ कह्यौ शास्त्र अनुमान तीजौ गुलधाणी प्रमुख, निवायतौ ज हजूर, जलसेकी लपसी चउथ, करै भूख चकचूर लेस रह्यौ धीमें करें, पुवा चीलडा सोय, पंचम ए पकवानको, पुवा नाम है जोय
॥ चौपाई ॥ दूध दही चावल ऊपरा, अंगुल एक जु देखो खरा, सो जाणो भवि निवियायतौ, अधिको होय तो विगयायतौ ४७ जैसें सीरो वलि लापसी, अंगुल घी तिरतो देखसी, तेतौ लहो निवियात ज्ञान, दो चउ अंगुल विगयां ठान ४८ खुरमा पर अंगुल इक पात, चढे तांहि निवियाते खात, इक अंगुल से अधिकी होय, विगयमांहि गिणिये तब सोय ४९ विगयादिनौ कहयौ अधिकार, पच्चक्खाणभाष्यथी सार, सुगम अरथ भाखामें खरौ, होय विरुद्ध पंडित शुध करौ ५० संवत ऋषि वसु सिद्धि शशि', मिगसर मास सुमास, पूर्ण हुवै पूनिम दिने, दिल्ली नगर निवास
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________________ सप्टेम्बर 2010 श्री जिनहर्षसूरीसरू, वडखरतरगछईश, लघुभ्राता उवज्झाय तसु, आनन्दरत्न गणीश // दु(दू)हा // तिनके क्रमकजलेससम, वच्छराजमुनिदास तिण ए भाषामें रची, रचना वचन विलास नन्नीबीबी श्राविका, शीलवंत गुरुभक्त, आग्रह तास विशेषतें, दोहे कीये व्यक्त इनको वांच विचारकै, करो विरत शुभकाज, जैन धर्म सेवो सदा, शिवमन्दिर की पाज // इति विगय-निवायता विवरण संपूर्णम् // C/o. अश्विन संघवी कायस्थ महोल्लो, गोपीपुरा, सूरत-३९५००१ // विगयना प्रकारचें यंत्र // विगयर्नु नाम प्रकार 1 2 / 3 / सामान्य विगय भेंस बकरी- घेटी, उटंडीनुं गायनुं भेसनुं बकरी- घेटी, गायनुं भेंसर्नु | बकरीनुं | घेटीनुं तलनुं सरसवनुं अलसीनुं| करडनुं पिंडगोल द्रवगोल पकवान्न घीमां तळेलु तेलमां तळेखें महाविगय मध 3 मक्खी भमरीनुं (माखीनु) मदिरा | 2 | काष्टनी पिष्टनी मांस | जलचरनुं स्थलचरनुं | खेचरनुं | गायनुं भेसन | बकरीनुं | घेटी, गायन SEE | कुंतियानुं oc www माखण