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अनुसन्धान ५२
॥ छन्द सोरठा ॥ माखन भेदे च्यार, गाय-भैंसका ए सही, छेली भरडी (भेडी) होय, ए विध माखणकी कही विगय अभक्ष ए च्यार, जिनवर स्वयं मुखसे कही, तजो दूर भवि एह, दुरगतिदायक ये सही
॥ अथ ३० निवायते लिख्यते ॥
॥ दोहा ॥ विगय तजै तजियै सही, जब निवयाते तीस, तजे जाय नहि मन अथिर, कर जयणा मन ईस१७ विगय पुद्गल द्रव्यसुं, हणे जा(जी?)य मुनिभाख, या कारण निवियायतें, दोष अल्पतर दाख मेवाजात जु सर्वही, जाण विगयका सार, विन रक्खें नहि लीजिय, निवयाते निरधार भक्ष्यविगयके निवायते, है संख्यायें तीस, तामें पयके पांच है, विवरण कहा जगीश पहिलो पयसाडी१८ कह्यो, खीर पेय१९ अवलेहि२०, दुग्घाटी२१ है पांचमौ, कर विचार सबलेहि
॥ ए ५ का अर्थ लिखै है ॥ करै गरम अत्यंत पय, अरे द्राख-बदाम रबडी रूपें दूध तें, पयसाडी इण नाम चावल बहुत मिलायकै, करै दूधनी खीर, तिनहिज नाम निवायतौ, तजत मिलत भवतीर सवा सेर पयमें धरै, शालकणा२२ केइ लेय, क्षीर नही पिण क्षीर सम, तीजौ नांमें पेय अग्नि पकै जिण दूधमें, चावल चूर्ण मिलाय, निवायतौ अवलेहिका, चौथो दियो बताय तक्र मिल्यो पय होत है, आमलरस संयुक्त, दुग्घाटी पहिचानकै, भोजन अवसर भुक्त