Book Title: Veerstuti Author(s): Kshemchandra Shravak Publisher: Mahavir Jain Sangh View full book textPage 3
________________ 44 314 जिनकी कृपासे मेरे मनकी चंचलता नष्ट हुई है, जिनके सदुपदेशसे मेरे अन्तःकरणमें शान्तिका सञ्चार हुआ, जिनके अद्भुत चरित्रयोगसे मुझे सम्प्रदायवादके बन्धन तोडनेका निश्चय मिला, जिनके बोधवचनोंसे अखंड आत्मसुखका मार्ग प्राप्त हुआ तथा जिनकी आज्ञासे इस ग्रन्थके लिखनेका अवसर मिला, जिनके अपार अनुग्रह वात्सल्य एवं उत्साहदानद्वारा मेरी लेखनकलाकी ओर प्रवृत्ति हुई हैं तथा जिनका आश्रय मेरे लिये कल्पवृक्षके समान अभीष्ट फलदायक होता रहा ह उन अध्यात्मशास्त्र प्रेमी, अप्रतिवद्ध विहारैकवती, निष्काम परोपकारी, शांतमुद्रा, महर्षिप्रवर, गुरुवर्य श्रीशातपुत्र-महावीर जैन संघानुयायी श्री १०८ स्वर्गीय श्रीमजैनमुनि फकीरचंद्रजी महाराजाधिराजकी पवित्र स्मृतिमें अन्तःकरणकी विशुद्ध भक्तिपूर्वक वीरस्तुतिकी विवृति और हिन्दीभापान्तर सादर समर्पित है। पुनश्च जिनके उदारहृदयमें अनन्य समता है, स्याद्वादसिद्धान्तका उज्वल पांडित्य है, जिनकी वाणी चन्दनसे भी अधिक शीतल है और वह मानव संसारके मनस्तापको एक दम मिटाती है, जिन्हें इष्ट और अनिष्ट पुद्गल समूहमें कभी मानसिक विचार नहीं हो पाता, जिन्हें बाह्याडम्बरसे सोलहों आने घृणा रहती है, जिनमें अहमहमिका क्रियाका नितान्त अभाव है, परहितसाधनमें जिनकी शुभप्रवृत्ति सतत जागृत है, बाडाबंदी-पक्षवाद-सम्प्रदायवादटोलावाद-गच्छवादकी दिवारोंको तोडकर तथा स्व-परका भेदभाव मिटाकर जिन्होंने स्वतन्त्रताका अध्यात्म मार्ग पकडा है, जो देश समाज जाति और धर्म हित अपने प्राणोंकी चाज़ी लगा देते हैं, इसके अतिरिक्त जिनमें और भी गाम्भीर्य-शौर्यधैर्यादि अनेक गुण हैं । ज्ञातपुत्र महावीर प्रभुके उन २००० साधु साध्वियोंके कर कमलोंमें वीरस्तुति प्रेम और भक्तिपूर्वक सादर समर्पित है। ज्ञातपुत्र महावीर जैन संघका लघुतम . पुप्फ भिक्खुPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 445