Book Title: Vardhaman Jivan kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 346
________________ वर्धमान जीवन-कोश २६६ भगवं च उदाहु-संतेगइया पाणा अप्पाउया, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्वित्ते भवइ । ते पुयामेव कालं करेंति, करेत्ता पारलोइयत्ताए पच्चायति । ते पाणा वि बुचंति, ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते अप्पाउया । ते बहुयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चकावायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्वायं भवइ । से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्टियस्स पडिविरयस्स जं णं तुब्भे वा अण्णोवा एवं वयह–“णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिक्वित्ते। अयं पि भे उवएसे णो णेयाउए भवइ । -सूय० श्रु २/अ७/ सू २७-२८ कई प्राणो ( उनके ) सम आयुष्य वाले होते हैं। वे उनके ( श्रमणोपासक के ) समकाल में ही काल करते हैं। वे त्रस कहे जाते हैं। सम-आयुष्यवाले प्राणी बहुतर होते हैं जिनसे श्रमणोपासक के सुप्रत्याख्यान होते हैं। इसलिए धावक के प्रत्याख्यान को 'नविषय बताना न्यायसंगत नहीं है। कई जीव अल्प आयुष्य वाले होते हैं जिनसे उसने अपने हिसात्मक आदान-प्रवृत्ति को हटाली है और जिनसे पहले ही वह (श्रमणोपासक ) काल कर जाते हैं काल करके पारलौकिकता के लिए चले जाते हैं। ( इसके बाद भी) वे ( अल्पायुषी प्राणी ) त्रस ही कड़े जाते हैं और ऐसे प्राणी बहुतर है जिनसे श्रमणोपासक के सुप्रत्याख्यान होते हैं। इसलिये श्रावक के प्रत्याख्यान को निविषप बताना न्या पसंगत नहीं है। .११ नव भंगी प्रत्याख्यान भगवं च उदाहु-संतेगइया समणोवासगा भवंति। तेसिं च णं वुत्तपुव्वं भवइ-णो खलु वयं संचाएमो मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए। णो खनु वयं संचाएमो चा उद्दसट्टमुद्दिट्टपुण्णम सिणीसु पडिपुण्णं पोसह अणुपालित्तए। णो खलु वयं संचाएमो अपच्छिममारणंतियसलेहणाझूसणाझूसिया भत्तयाणपडियाइक्विया क.लं अणवक खमाणा विहरित्तए । वयं णं सामाइयं देसावगासियं-पुरत्था पाईणं पडीणं दाहिणं उदीणं एतावताव सत्रपाणेहिं सवभूएहिं सव्वजीवहिं सव्वसन्तहिं दंडे णिकि वत्ते पाणभूयजीवसत्तेहिं खेमंकरे अहमंसि । .१-तत्थ आरेणं जे तसा पाणा, जेहिं समण वासगस्स आयाणसो आमरणंताए. दंडे णिकि खते, तेतओ आउ विप्पजहंति, विप्पजहित्ता तत्थ आरेणं चेव जे तसा पाणा, जेहिं समणोव सगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिकि वत्ते, तेसु पच्चायंनि तेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ । ते पाणा वि वुत्त्वंति, ते तसा वि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरटिइया। ते बहुतरगा पाणा जेहिं समणोवासगम्स सुपच्चक वायं भवइ । ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक वायं भवइ । से महया तसकाय ओ उपसंतस्स उवट्टियस्स पडिविरयम्स जं णं तुम्भे वा अण्णो वा एवं वयह-''णत्थि णं से केइ परियाए जसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिकि वन्ते ।' अयं पि भे उवापसे णो गया गए भवड़। -सूय० श्रु/अ ७/सू २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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