Book Title: Vallabh Bharti Part 01
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Khartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray

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Page 13
________________ किया। संस्कृत में पुण्यश्री अष्टक की रचना भी आपने की थी। सज्झाय संग्रह और पंच प्रतिक्रमण सूत्र का संपादन भी आपने किया था। श्री समर्थश्रीजी, श्री विचित्रश्रीजी, श्री वीरश्रीजी, विजयश्रीजी, विशालश्रीजी आदि कई आपकी शिष्यायें बनी किन्तु सब ही शिष्याओं का आपकी उपस्थिति में ही स्वर्गवास हो गया था। अपनी निजी पुस्तकों का संग्रह भी आपने जयपुर के समाज को सौंप दिया था। असातावेदनीय कर्मों के कारण आपके कई बार बड़े-बड़े आपरेशन भी हुये । रुग्णता और शारीरिक अस्वस्थतावश आपने जयपुर में स्थिरवास स्वीकार कर लिया था रुग्णता की अवस्था में आपकी सेवा-शुश्रूषा श्रीमती इन्द्रबाई श्रीश्रीमाल जो आपकी सेवा में ४० वर्ष से रह रही थीं, ने जिस लगन और आत्मीयता के साथ की, वह अभूतपूर्व थी। वि० सं० २०३० माघ वदि ३. दिनांक ११ जनवरी १९७४ को ८२ वर्ष की अवस्था में आपका जयपुर में स्वर्गवास हो गया। जयपुर के जैन समाज ने अन्तिम क्रिया बड़े ठाठबाठ से की। इस समय का सारा व्यय श्रीमती इन्द्रबाई ने करके अपनी असाधारण गुरु-भक्ति का परिचय दिया था । आत्म-शान्ति निमित्त जयपुर के समाज ने अष्टाह्निका महोत्सव, शान्तिस्नान का भी आयोजन किया था। अन्तिम संस्कार के समय ही यहां के श्री संघ में आपकी स्मृति में प्रस्तुत 'वल्लभभारती' ग्रन्थ छपाने का निर्णय लिया था। स्वर्गीया श्री विनयश्रीजी म. की स्मृति में यह ग्रन्थ प्रकाशित कर जयपुर की "श्रीमाल सभा" अपने को सौभाग्यशाली समझती है और महाराजश्री के चरणों में श्रद्धांजली अर्पित करती है। जयपुर लालचन्द वैराठी १४-४-७५

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