Book Title: Vaidik kosha
Author(s): Bhagwaddatta, Hansraj
Publisher: Vishwabharti Anusandhan Parishad Varanasi

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Page 12
________________ महदद्य भरतस्य न पूर्वे नापरे जनाः । दिवं मर्त्य इव बाहुभ्यां नोदापुः पञ्चमानवाः ॥ इति ॥१४॥ शतपथ १३१५१४॥ तथा च एतेन ह वा ऐंद्रेण महाभिषेकेण दीर्घतमा मामतेयो भरतं दौष्यन्तिमभिषिषच । .........."तदप्येते श्लोका अभिगीताः । हिरण्येन परीवृतान् कृष्णान् शुक्लदतो मृगान् । मष्णारे भरतो ऽददाच्छतं बद्धानि सप्त च ॥ भरतस्यैष दौष्यन्तेरग्निः साचिगुणे चितः । यस्मिन्त्सहस्रं ब्राह्मणा बदशो गावि भेजिरे ।। अष्टासप्ततिं भरतो दौष्यन्तियमुनामनु । गङ्गायां पुत्रने ऽबनात् पचपश्चाशतं हयान् ।। त्रयस्त्रिंशच्छतं राजा ऽश्वान् बध्वाय मध्यान् । दौष्यन्तिरत्यगाद्राज्ञो मायां मायावत्तरः ।। महाकर्म भरतस्य न पूर्वे नापरे जनाः । दिवं मर्त्य इव हस्ताभ्यां नोदापुः पञ्च मानवाः ॥ इति ऐतरेय बा. ८१२३॥ इन गाथाओं यक्षगाथाओं श्लोकों में वर्तमान दौष्यन्ति भरत और शकुन्तला नाम स्पष्ट महाभारत काल से कुछ ही पहले होने वाले व्यक्तियों के हैं । अतः शतपथादि ब्राह्मण महाभारत-काल में ही संकलित हुए, ऐसा मानना युक्तियुक्त है । प्रश्न-(क) ये सब नाम यौगिक होने से अपने धात्वर्थ मात्र का निर्देश करते हैं । (ख) दुःभ्यन्त, भरत, शकुन्तला आदि नाम व्यक्ति-वाची नहीं है, प्रत्युत जातिवाची * एतरेय ८॥ २३ जिसे श्लोक कहता है शतपथ १३१ ५। ४। १४॥ उसे गाथा कहता है, और जैमिनीय १ । २५८ ॥ जिसे श्लोक कहता है, ऐतरेय ३४३ ॥ उसे ही यक्षगाथा कहता है। अतएव श्लोक गाथा और यक्षगाथा, यह तीनों शब्द पर्याय ही हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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