Book Title: Vachak Mukti Saubhagya gani Krut Stavan Chovisi
Author(s): Abhay Doshi
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ September-2003 दिवसे, शुभ मुहूर्ते मारा हृदयमां सज्जन पुरुषनी जेम आपनो वास थयो छे, ते कायम माटे अंकित थयो छे. जेम चित्रमा हाथी पर एकवार महावत दोरवामां आवे, तेने ऊतारवानो गमे तेटलो प्रयत्न करवामां आवे, छतां ते जेम ऊतरतो नथी एम, तमे मारा हदयमांथी पळभर पण दूर थता नथी. चौदमा श्री अनंतनाथ स्तवनमा परमात्मानी उपस्थितिने कारणे कर्मोनी केवी दशा थई छे. तेनुं अलंकार-लययुक्त आलेखन कर्यु छे; "तुं हि ज मुझ शिर राजीउ, कर्म अहितस्युं जोर, ते वनि पन्नग गत विरहें, जिहां विचरे हरखे मोर.' हे प्रभु ! जो आप मारा शिर पर बिराजमान हो, तो कर्म-अहित शुं करी शके ? जेम जे वनमां हर्षपूर्वक मोर क्रीडा करता होय, त्यां साप केवी रीते रही शखे ! श्री कुंथुनाथ स्तवनमा ‘अर्क' शब्द परनो श्लेष्ट नोंधपात्र छे; 'अरक नामें तरु छे जेह, अरकसमान दीपे स्युं तेह.' अर्क वृक्ष (आकडो) शु अर्क (सूर्य) समान दीप्तिमान थई शके ! ए भले वृक्ष तरीके अर्क नाम धरावे छे, पण ते वास्तविक सूर्य जेवो प्रकाश धरावी शकतो नथी. ए ज रीते श्री नेमिनाथ स्तवनमा पोतानी प्रीतिनी दृढताने वर्णवता कहे छे "थाइं जूनी देहडी, प्रीत न जूनी होइं रे... वागो विणसें जरकसी, पिण सोनुं श्याम न होई रे." ए ज रीते महावीरस्वामी स्तवनमां परमात्माना शासन पाम्यानो आनंद मनहर वर्णानुप्रास अलंकार. द्वारा आलेखायो छे. 'मेरु थकी मरुभूमिका रे, रुडी रुडी रीति रे.' आवी अनेक मनोहर-काव्यसौंदर्य भावसौंदर्यमय अभिव्यक्तिने लीधे आ चोवीस मध्यकालीन स्तवन साहित्यनी एक महत्त्वनी कृति तरीके स्थान पामे तेवी छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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