Book Title: Vachak Mukti Saubhagya gani Krut Stavan Chovisi
Author(s): Abhay Doshi
Publisher: ZZ_Anusandhan
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________________ 96 अनुसंधान-२५ आ आरो पंचम नही रे, मानुं चोथो निरधार रे. जिहां जस शासननी रुचि हो लाल. मेरु थकी मरुभूमिकारे, रुडी रुडी रीति रे वा० जिहां छाया सूरतरुतणी हो० अगनि थकी अगर तणो रे, जिम प्रगटें सुवासरे वा० दह दिशि दीपें अति घणुं हो. जिम जावुनद पारस थकी रे, तिम कलिथी गुणहेत रे. वा० जो वीरशासन शुभ रीति हो लाल. जिम निशी दीपक, समुद्रमां रे द्वीप, जीम मरुमां रेव वा० जीम वनमां नगर भलु हो, भूखमां जिम भोजन वरु रे, जिम तममा उद्योत रे वा० तिम कलिमां वीरसेवना हो. हुं ईम मानु मुझ थकी रे, तालेवर नही कोय रे वा० पाम्यो वीर पद. पूजना हो लाल. कोय कोयनें कोयनो रे , उपगार विशेष रे वा० मुगतिसौभाग्य वाचक भणे हो लाल. इति श्रीवीरजिनस्तवनं // 24 // महोपाध्याय श्रीमुक्तिसौभाग्यगणिकृता चतुर्विंशतिका समाप्तः d. A-31, ग्लेडहर्स्ट, फिरोजशाह रोड, सांताक्रुज (वे.) मुंबई-५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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