Book Title: Uttaradhyayan Sutra me Vinay ka Vivechan
Author(s): Heerachandra Maharaj
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 8
________________ 354 जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क जगह से निकाल दिखा जाता है, दुत्कार कर भगा दिया जाता है, ठीक वैसे ही जो व्यक्ति दुराचारी हैं, प्रत्यनीक (कृतघ्न) हैं, मुखरी (वाचाल) हैं- उन्हें भी सभी स्थानों से निकाल दिया जाता है। दुर्विनीत का पहला अवगुण : दुःशीलता हैं दुर्विनीत व्यक्ति के इस गाथा में तीन अवगुण या लक्षण बताए गए । पहला अत्रगुण है उसका दुश्शील होना, दुराचारी होना, सदाचार- रहित होना । शील जीवन का शृंगार है, समाज में प्रतिष्ठा दिलाने वाला है, जीवन को ऊंचा उठाने वाला है। अविनीत व्यक्ति सदाचार और शील के महत्त्व को जानते बूझते हुए भी अवगुण- आराधक बन कर दुराचार व दुःशील में प्रवृत्त होता है । दुराचारी व्यक्ति 'शील' को समझ कर भी विपरीत आचरण में खुश होता हुआ निरन्तर अधःपतन को प्राप्त होता है। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह आदि गुणों के महत्त्व को जान कर भी हिंसा आदि में अपने-आपको झौंक देता है। उसे बताया जाता है कि हिंसा अवगुण है, अहिंसा सद्गुण है। झूठ प्रतीति को घटाने वाला है, सत्य विश्वास को बढ़ाने वाला है। चोरी अस्थिरता देती है, पर अचौर्य स्थिरता प्रदान करता है। मैथुन जीवन विनाश का क्षण है तो ब्रह्मचर्य जीवन विकास का कारण । परिग्रह असंतोष व अशांति दाता है, जबकि अपरिग्रह से संतोष, शांति व सुख मिलता है। शीलवान् ही संसार में शोभा पाते हैं, दुश्शील व्यक्ति अपयश व निन्दा के भागी होते हैं। दुराचार समस्त पद-प्रतिष्ठा को धूल में मिलाने वाला होता है। हजारों-लाखों व्यक्ति इन हितोपदेशों को, जीवन निर्माणकारी सूत्रों को सुनते हैं, पर अज्ञानी जीव शीलरूप सदाचरण का त्याग कर कुशीलसेवन में निरत हो जाते हैं। दूसरा अवगुण: कृतघ्नता दुर्विनीत का दूसरा लक्ष्ण बताया है प्रत्यनीकता अर्थात् विरोधी आचरण रूप कृतघ्नता । दो तरह के व्यक्ति होते हैं एक कृतज्ञ और दूसरे कृतघ्न । कृतज्ञ का अर्थ है कृत अर्थात् किए गए को 'ज्ञ' अर्थात् जानने-मानने वाला । कृतघ्न इसके ठीक विपरीत होता है, अर्थात् वह अपने प्रति किए गए उपकारादि को भुला देता है, उसकी स्मृति तक को मिटा देता है, याद दिलाओ तो विपरीत भाषण, आचरण करता है। दूसरों के किए गए उपकार पर पानी फिरा देने वाले कृतघ्न व्यक्ति कहीं टिकते नहीं। कोई उनको आदर नहीं देता। सभी उनसे दूर रहना, उनको दूर रखना पसन्द करते हैं। वे घर से निकाल दिए जाते हैं और जन-जन से तिरस्कृत होते हैं। आज के युग में कृतज्ञ कम हैं और कृतघ्न व्यक्तियों की भरमार है। परिवार से ही चलिए । परिवार में माँ का दर्जा सर्वश्रेष्ठ माना जाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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