Book Title: Uttaradhyayan Sutra me Vinay ka Vivechan Author(s): Heerachandra Maharaj Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 6
________________ 352...... जिनवाणी-- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क फूल की पांखड़ी' के अलावा मझ गरोब के पास क्या मिल सकता है, इस बात को कहकर विनयी प्रेम अर्जित कर लेता है और पाँच पकवान खिलाकर मन में अहंकार रखने वाला एक बात कह देता है कि- जीवन में कभी ऐसे पदार्थ कहीं सेवन किये हैं क्या? तो वह विद्वेष बांध लेता है। शास्त्रकार कह रहे हैं— व्यवहार जगत् में जो लोग स्वार्थ के वशीभूत होकर विनय करते हैं, मोक्ष मार्ग में उसका कथन नहीं किया जा रहा है। जिसके जीवन का यह अंतरंग गुण बना हुआ है, सहज बाहर और अन्तर का एक रूप रखकर जो प्रमोदभाव से सम्मान-सत्कार किया जा रहा है उस विनय का यहाँ वर्णन है और उसी विनय को धर्म का मूल कहा जा रहा है। दशवैकालिक सूत्र के नौवें अध्ययन में विनय को धर्म के मल के रूप में कहा गया मूलाओ खंधप्पमवो दुम्मस्स, खंधाओ पच्छा समुवेंति साहा। साहप्पसाहा विरुहंति पत्ता, तओ सि पुष्पं च फलं रसो य।। एव धम्मस्स विण) मूल, परमो से मोक्खो। जेण कित्तिं सुअं सिग्घं, णिस्सेसं चाभिगच्छड्।।दशवै.9.1.2 ।। अर्थात् जैसे वृक्ष के मूल में शाखा-प्रशाखा पुष्प फल उत्पन्न होते हैं उसी तरह धर्म का मूल विनय है। ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि गुण शाखाप्रशाखा-पुष्प के रूप में हैं और मोक्ष उसका फल कहा गया है। विनयायत्ता: गुणा: सर्वे...। जिनके जीवन में विनय है, वे सभी गुण प्राप्त कर सकते हैं। विनय अर्थात् काया से झुकना, वचन से मधुर बोलना और मन से सम्मान की भावना होना। चार मंग भगवंत (आचार्य श्री हस्तीमल जी म.सा.) इसे चार भागों में बांटते थे। कहीं काया का विनय है, मन का नहीं। कहीं मन में विनय है, काया में नहीं। कहीं मन और काया दोनों में विनय है, तो कहीं मन और काया दोनों में विनय नहीं है। प्राचीन परम्परा में कभी घर का कोई बड़ा बुजुर्ग घर में प्रवेश कर जाता तो आज की तरह जैसे नई वधू खुले मुंह, बिखरे बाल सामने आकर बोल जाती है, पहले ऐसा नहीं था। बुजुर्गों के प्रवेश करने के साथ बहू दुबक कर बैठ जाती, अंग-प्रत्यंग का संकोच कर लेती। क्रिया से वह बहू चरण नहीं छूती थी, पर मन में सम्मान की भावना थी। एक बच्चा जो पाठशाला में अध्ययन कर रहा है, शिक्षक के आने पर क्रिया से खड़ा होता है, नमस्कार करता है. शब्दों में सम्मान करता है. पर उसके मन में विनय नहीं है। यह मास्टर पीटता बहुत है' मन की भावना है कि इसकी बदली शीघ्र हो जाय और यह चला जाय, बदली न हो तो पीरियड तो खत्म हो। बच्चा काया से तो झुक रहा है, पर मन से नहीं। विनय का सर्वोत्कृष्ट रूप है तन, वचन और मन तीनों से विनय का होना। विनय के इस रूप से सम्पन्न व्यक्ति सद्गुणी को देखकर हाथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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