Book Title: Uttaradhyayan Sutra me Vinay ka Vivechan Author(s): Heerachandra Maharaj Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 9
________________ उत्तराध्ययनसूत्र में विनय का विवेचन 355 है, पर उसी माँ से संबंध तोड़ने में पुत्र को तनिक भी हिचकिचाहट नहीं होती। आप श्रावकों में ही नहीं, यहाँ हम श्रमणों की श्रेणी में भी इस तरह के कृतघ्न हो सकते हैं। सं. २०२० में अजमेर में साधु-सम्मेलन का आयोजन हुआ। अनेकानेक श्रमण संघ पदाधिकारी पधारे, अन्य विद्वान ज्ञानी श्रमण भी पधारे। आचार्य भगवंत के साथ मैं भी वहाँ था । एक बार एक संत से वार्ता का अवसर आया। उन महानुभाव ने अपने गुरु भगवंत का साथ छोड़ दिया था। मैंने उनसे पूछा - "तुमने अपने गुरुजी का साथ क्यों छोड़ दिया? जब तुम दीक्षा लेने आए तब श्रमण-धर्म का आगम-ज्ञान 'अ' 'ब' भी नहीं जानते थे, तुम्हारे गुरुदेव ने न जाने कितनी मेहनत कर तुमको सिखाया, पढ़ाया और तैयार किया। तुम्हें योग्य बनाने के लिए उन्होंने अपनी साधना, अपना स्वाध्याय, अपना ज्ञान-ध्यान छोड़कर समय निकाला, ऐसे उपकारी गुरु से तुम अलग कैसे हो गए ?" जानते हैं आप, क्या जवाब दिया उस श्रमण ने ? उसने कहा- -"म्हारा गुरुजी यूं तो सगला काम म्हारे वास्ते करिया पण म्हारा सूं बखाण नी दिरावता, इण वास्ते आगो वेगो । आवे जिणां सूं एहीज बोले, म्हनें तो बोलणादे कोनी, जरे पछे कोई फायदो?" ऐसे अन्य बीसियों दृष्टान्त हमें अपने आस-पास के समाज में मिलेंगे। तीसरा अवगुण : मुखरी वचन दुर्विनीत का तीसरा लक्षण बताया है- मुखरी अर्थात् वाचाल । "मुखरी" शब्द के तीन अर्थ लिए जाते हैं। एक बिना मतलब बोलने वाला, दूसरा जिनका मुख शत्रु है अर्थात् जिन्हें ढंग से बोलना नहीं आता । मारवाड़ी में कहें तो. "बाई केवता रांड आवे ।" तीसरा- जिन्हें सीधी बात कहने की आदन नहीं, जो हर बात में आड़ा टेढ़ा ही बोलते हैं। बिना मतलब बोलने वाले कभी चुप नहीं बैठते । जैसे रेडियो का बटन ऑन करने पर रेडियो बोलने लगता है वैसे ही इन लोगों से कुछ पूछ लो, थोड़ा छेड़ लो फिर ये बोलते ही चले जाते हैं। स्थिति ऐसी आती है कि सुनने वालों को इन्हें हाथ जोड़कर वहाँ से उठना पड़ता है। लोग उन्हें देखकर अपना रास्ता तक बदल देते हैं, उनसे बचने के लिए। मुखरी (मुख+ अरी) प्रकृति की एक तपस्वी बाई ने तपाराधन किया। आप उसकी साता पूछने चले गए। अपनी प्रकृति के अनुसार वह कहेगी'अब आया हो म्हारी साता पूछण ने तपस्या पूरी हूगी अबे तो काले म्हारे पारणो है ।' पूछने आए थे साता पाँच बात सुननी पड़ी। किसी ने भण्डारी सा से पूछाफटाक से जवाब मिल जाएगा "कीकर भण्डारी सा बैठा हो!' "सुहावे कोनी तो गुड़ाय टे भाई । " और यदि बिना उनको बतलाए आगे निकल गए तो भी सुना तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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