Book Title: Uttaradhyayan Sutra me Vinay ka Vivechan
Author(s): Heerachandra Maharaj
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 13
________________ 359 | उत्तराध्ययनसूत्र में विनय का विवेचन "सड़े कान वाली कुतिया तथा चावल को छोड़कर भिष्टा खाने वाले शूकर की तरह अविनीत व्यक्ति सर्वत्र दुत्कारा जाता है, तिरस्कृत होता है. ऐसा दुष्परिणाम जानकर अपनी आत्मा का हित चाहने वाला अपने आप को विनय में स्थित करे।'' इसके विपरीत कुछ लोग हस्ती स्नान की तरह पहले जल में नहाकर शरीर स्वच्छ करते हैं और उसके बाद अपने पर रेत डाल लेते हैं अर्थात पहले तो धर्माचरण कर आत्मशुद्धि की ओर बढ़ते हैं पर बाद में....! ऐसे सैकड़ों दृष्टान्त हो सकते हैं। विनय से सुख, शांति और आनन्द आप जप कर लें, तप कर लें, व्रत कर लें, पर यदि आप में कृतज्ञता नहीं, विनय नहीं तो सारे जप-तप व्यर्थ हैं। भगवन्त (पूज्य गुरुदेव स्व. आचार्य श्री हस्तीमल जी म.सा.) फरमाते थे कि बारह महीने तक लड़का हिन्दी. अंग्रेजी, उर्दू सीखता है पर परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो जाता है....! कारण यही है कि वह गुरु, माता-पिता का अहसान नहीं मानता। आप अपने मानापिता और सम्माननीय गुरुजनों को, सज्जनों को पीड़ा देते हैं तो आपका तपत्याग, शिक्षा-दीक्षा कोई काम की नहीं। आप जप-तप करने के साथ विनयी बनिये, कृतज्ञ बनिये, उपकारी के उपकार को ज्याज सहित चुकाना सीखिए। इससे आपको शान्ति मिलेगी. आप आगे बढ़ सकेंगे और आपका जीवनदर्शन भावी पीढ़ी को रोशन कर सकेगा। आप विनय धर्म को स्वीकार कर चलेंगे तो जीवन में सुख, शांति व आनन्द प्राप्त कर सकेंगे। भगवान ने टु:खों के निवारण, समस्याओं के समाधान और सुखप्राप्ति का मन्त्र देते हुए कहा है---- अप्पा चेव दमेयवो, अप्पा हु खलु दुद्दमो। अप्पा दंतो सुही होइ, अरिस लोए परत्थ य ।। उत्तरा. 1.15 ।। आत्मा को वश में है करना, कारण आत्मा ही दुर्दम है। इस भव परभव में सुख पाता, जो दान्त आत्मा सक्षम है।। सुख प्राप्ति एवं दु:खों के नाश के लिए अपना दमन करो, स्व को वश में करो, अपनी आत्मा को नियन्त्रित एवं अनुशासित करो। अपनी आत्मा का, अपने अहं का दमन करना ही दुष्कर है। जो प्राणी जितेन्द्रिय बन दान्त बन जाता है, वह दान्त आत्मा ही इस लोक व परलोक में सुखी बनता दुःखों का कारण 'अहंभाव' दुःखों का एकमात्र कारण है अपने आप पर नियन्त्रण नहीं रखना : जिसने अपनी आत्म-शक्ति पर, स्व-सामर्थ्य पर, अन्तर्निहित कोष पर नियन्त्रण नहीं रखा, वह स्वयं नो दु:खी बनता ही है, साथ ही उसने अपने परिवार, समाज और विश्व तक को भी दु:खी किया है। विश्व की जितनी भी समस्याएँ आपके समक्ष हैं, उन सबका मूल कारण है-- प्राणी का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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