Book Title: Updeshmala
Author(s): Dharmdas Gani, Dinanath Sharma
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

View full book text
Previous | Next

Page 211
________________ ११६ ३४३ ३२३ ४०१ ४०५ २७३ १३२ ५१८ जइ गिण्हइ वयलोवो जइ ठाणी जइ मोणी जइ ता असकणिजं जइ ता जणसंववहार जइ ता तण-कंचण लेछु जइ ता तिलोगनाहो जइ ता लवसत्तमसुर जइ ताव सब्बओ जइ दुकर-दुकर जइ न तरसि धारे जइयाणेणं व जइ सव्वं उबलद्धं जं आणवेइ राया जं जं नजइ असुहं जं जं समयं जीवो जं जयइ अगीयत्थो जं तं कयं पुरा जंतेहि पीलिया विहु जं न लहइ सम्मत्तं जगचूडामणिभूओ जग्गेण जलं पीयं जस्स गुरम्मि न भत्ती जस्स गुरुम्मि परिभवो जह उजमिउं जाणइ जह कच्छुल्लो कच्छु जहा खरो चंदण भारवाही जह चकवट्टि साहू जह वयइ चक्कवट्टी २२२ जह जह कीरइ संगो ६३ जह जह खमइ सरीरं ३४४ जह जह बहुस्सुओ ७१ जह जह सव्वुवलद्धं ४५८ जहट्ठियदब न याणइ ४ जहठियखेत्त न याणइ २९ जह दाइयम्मि वि पहे ६७ जह नाम कोइ पुरिसो ६६ जह मूलताणए पंडुरम्मि ५०१ जह वणदवो वणं दवदवस्स ४३४ जह सरणमुवगयाणं ४८३ जह सुरगणाण इंदो __७ जाईए उत्तमाए २०९ जाइकुलरूवबलसुय २४ जाणइ य जह मरिजइ ३९८ जाणइ य जहा भोगिड्डि १०९ जाणिजइ चिंतिजइ ४२ जायम्मि देह-संदेहयम्मि १२४ जाव य लवणसमुद्दो __ २ जावाउ सावसेसं २०० जिणपहअपंडियाणं ७५ जिणवयण कप्परुक्खो २६३ जिणवयण-सुइ-सकण्णा ४२० जियकोहमाणमाया २१२ जीयं काऊण पणं ४२६ जीवंतस्स इह जसो ५८ जीवेण जाणिय १७१ जीवो जहा मणसियं ३३१ ३३० २०५ द. २०४ ३४५ २५८ ५३८ ९० M १०५ ९८ १८९ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228