Book Title: Updesh Prasad Part_4
Author(s): Vijaylaxmisuriji
Publisher: Surendrasurishwarji Jain Tattvagyanshala Ahmedabad

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Page 15
________________ || प्रथमावृतिगत प्रस्तावना || 0000 नानाविधधर्मकर्मानुष्ठानबधकदा दक्षाः कदीकुर्वन्त्विदम्-इह हि जिनमतोदधिमथनमन्थानमन्द-| |राचलायमानश्रीविजयलक्ष्मीसूरिनिष्कासितवाक्सुधारसलिप्तोऽयमुपदेशप्रासादो मुक्तिपथपस्थितजव्य-14 जनमनोविश्रामप्रासादो नानाविधपाषएमपहिरवमुखरीकृतदिक्चक्रवालक्रोधादितस्करगणपरिकलितानेक र कुमततरुवरगुपिलसंसाराटवीमध्यदेशैककोणवर्तित्वेन जूरिजनताऽक्षुलमार्गत्वेन च सत्पथाचारघ्रष्ट-13 नव्यजनाप्रत्यदोऽद्य मुघापणरूपसरणिबन्धेन प्रकटितो हीनाधिकमात्रानुस्वार विसर्गवर्णपदादिदोषकच| वरसंमार्जनेन च संमार्जितः परमनिःश्रेयसाधिनाथकृपासंमार्जनीप्रान्तेनास्मानिः । ग्रन्योऽयं संवत् १७४३| संवत्सरे वैक्रमीये श्रीविजयबदमासूरिनिनिर्मितो वर्णसमूहात्मकः कथं प्रासादसंज्ञात्वेन संजाघटीति 8 तथात्वेऽपि स्तम्लगवाधारतोरणाद्यवयवा अस्य कथं संजवन्ति ? इत्येतत्सर्वमन्तिमस्तम्नान्तिमसंबन्धे प्रबन्धप्रबन्धकैरेव सप्रपञ्च प्रापञ्चि रूपकालङ्कारेण श्रीसिघाचल विराजितर्षजदेवालङ्कतप्रासादवर्णनावस-12 हरघारेणेति सविस्तरं विस्तृतमस्य प्रथमविनागप्रस्तावनायां तद्न्यप्रदर्शनपुरःसरमत्रापि च विजागेऽन्तिमव्याख्याने इति नात्र पुनरुच्यते, जिज्ञासुनिश्च तत एवावसेयम् । पूज्यपादाश्चेमे ग्रन्थकर्तारः काँस्कान् ग्रन्थानन्यान् ग्रथितवन्तः ? जन्मना कां जूमि को पितरौ के Jain Education International 2010_0512 For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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