Book Title: Tulsi Prajna 1993 02 Author(s): Parmeshwar Solanki Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 5
________________ सम्पादकीय बड़ली जैन शिलालेख का महत्व और उसका अक्षरविन्यास राजपूताना म्यूजियम, अजमेर में सुरक्षित बड़ली-शिलालेख अतीव महत्त्वपूर्ण है। इस त्रुटित लेख को समझने-बूझने में पं. गौरी शंकर ओझा, डा० के० पी० जायसवाल, डॉ० आर० बी० पाण्डे, डॉ० डी० सी० सरकार, एस० आर० गोयल, टी० पी० वर्मा और सी० एस० उपासक प्रभृति अनेकों विद्वानों ने अथक प्रयास किये हैं। ये प्रयास, अधिकतर शिलालेख को अशोक के लेखों से पूर्व अथवा पीछे का लिखा होने तथा उसकी लिपि एवं लिप्यक्षरों की बनावट से उसके कालनिर्धारण पर हए हैं। उसमें उल्लिखित घटना और उसकी पदावली (इबारत) में अभिप्रेत अर्थ को खोजने का प्रयास कम हुआ है।' १. किन्हीं भी दो व्यक्तियों का लेख एक जैसा नहीं होता और कैसे भी पुराने नये लेख की प्रतिलिपि सम्भव है; फिर भी न जाने क्यों लोग लिप्यक्षर बनावट से काल-निर्धारण की चेष्टाएं करते हैं। दुर्भाग्य यह है कि उसमें अन्तर की समय सीमा भी उत्तरोत्तर छोटी बनाकर ये लोग अनर्थ करने से भी नहीं चूकते !Page Navigation
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