Book Title: Tran Laghu Padya Rachano Author(s): Samaypragnashreeji Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ ५८ तोरणि आए किउं प्यारे, पसू-पीरि हरी सिधारे ॥२॥ का० प्राणप्रिया किउं जीज, कामबानि करी तन छीजइ; हठ हठ न करउ रोस वारउ, छारूंगी तन पालव मींता आठ भवकी प्रीति संभारउ ||३|| का० यादव - करि आवि न चींता; पीया होतउ पूरिन - आसा, कबि हुं अबला रीसावि सखीयन मई काहा करउ हासा ||४|| का० सो तउ मील सुजान मनावि बिन रस चाखि बिरंगी जानी मई तेरी चतुराई, Jain Education International नांही मूढ गमारि हुं चंगी. ॥५॥ का० चकवी दोरि परि फिरि जाई; भए रे बिं (वि) देसी कंता, अब सखी आयउ हि साबन, मेरठ अंगनउ कीजि पावन; मधुरा वरसई मेहा, मोहन विन दुःख अनंता ॥६॥ का० अनुसन्धान ४७ कोई दीजि मोही छेहा ॥७॥ का० अब सखी भाद्रव गाजि, मेह - झडि मंडी पुहवी साजि; बीजरी चिहुं दिसिह चमकि, पीठ पासि बिना हीउं कमकि. ॥८॥ का० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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