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तोरणि आए किउं प्यारे, पसू-पीरि हरी सिधारे ॥२॥ का०
प्राणप्रिया किउं जीज, कामबानि करी तन छीजइ;
हठ हठ न करउ रोस वारउ,
छारूंगी तन पालव मींता
आठ भवकी प्रीति संभारउ ||३|| का०
यादव - करि आवि न चींता; पीया होतउ पूरिन - आसा,
कबि हुं अबला रीसावि
सखीयन मई काहा करउ हासा ||४|| का०
सो तउ मील सुजान मनावि बिन रस चाखि बिरंगी
जानी मई तेरी चतुराई,
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नांही मूढ गमारि हुं चंगी. ॥५॥ का०
चकवी दोरि परि फिरि जाई; भए रे बिं (वि) देसी कंता,
अब सखी आयउ हि साबन, मेरठ अंगनउ कीजि पावन; मधुरा वरसई मेहा,
मोहन विन दुःख अनंता ॥६॥ का०
अनुसन्धान ४७
कोई दीजि मोही छेहा ॥७॥ का०
अब सखी भाद्रव गाजि,
मेह - झडि मंडी पुहवी साजि; बीजरी चिहुं दिसिह चमकि,
पीठ पासि बिना हीउं कमकि. ॥८॥ का०
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