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मार्च २००९
अब सखी सुंदर आसो, पूरण चंद गयणे उल्लासो; सरोवर कमल बहु बिकसइ,
दीवाली कीजि मन हरसे ||९|| का०
अब सखी आएउ काती अरदास करूं गुणि राती; अन्न न अन्न न भावई,
कोई कंत सलूणउ मेलावि ॥१०॥ का०
अब सखी मागसिरि भोगो, काया कोमल साधिउ योगो; मिश्री गोरस पीजि,
मिली जोडी तिसी फलीजि. ॥११॥ का०
अब सखी पोस मई पोसो, मोही कूडउ न दाखि दोसो; दउहिली राति न जाइ
तारा गणतां मोही विहाई ॥१२॥ का०
अब सखी मांह कराला,
किउं रहि घरि एकली बाला; हींम पडि सांत ते वाइ,
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बिरहणि कमल कुमलाइ ॥१३॥ का०
अब सखी फागुण रमीइं
होली खेली दुख सब गमीई; ऊडि ऊडि लाल गुलाला,
मुहर्या आंबा अति रसाला. ||१४|| का०
अब सखी चैत्त मइ चेतो,
करउ करुणा सुख लहुं तेतई; कहुंउ कहुडं कोकला बोलई,
दावानल बिरहउ खोलइ ||१५|| का०
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