________________
६०
अब सखी नेम विसाखई, सिद्धि रमणी सिउं चित्त राखई; चूया चंदन तपि गाढा,
अब सखी जेठा मासे,
आयउ स्यामसुंदर बोलइ टाढा ||१६|| का०
बिन काजि फिरि उदासे; सूरध पीलू झलवाइ,
अब सखी आसाढ सोहि, गयणे माधव जनमनमोहि; प्रिउ प्रिउ बोलि बाबीहा,
क्रीडा कुसमकी करउ मन भाई ॥१७॥ का०
नेमना विन जाइ दीहा. || १८ || का
दुःख वीसारन राजे,
पीछई मिलन कि काजे;
श्री गि[र] नारिह प्रीयु पायउ
राजुलि राणी सोहागिनि,
Jain Education International
पेखी नयनई अतिहिं सुहायउ || १९|| का०
करी यदुपति अपनी रागिनि;
नयक न मायउ न मोहिइ ( ? )
अजरामर पद सारा,
दोय सिवमिदरि आरोहई ||२०|| का०
दोय भोगवि सुख सुविचारा; मूरति की बलिहारी,
अनुसन्धान ४७
सिवादेवी सुत ब्रह्मचारी. ॥२१॥ का०
नेम राजुलि पालिउ नेहा, तिम चतुरा हुंयो गुणगेहा; राखउ जिनजी सिउं रंगा,
नाम निरमल हि जलगंगा ॥२२॥ का०
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org