Book Title: Tran Laghu Padya Rachano
Author(s): Samaypragnashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्च २००९ ऋण लघु पद्य रचनाओ कर्ता : वाचक विजयशेखरजी सं. साध्वी समयप्रज्ञाश्री श्रीनेमिनाथ अने महासती राजीमतीनो तेमज स्थूलिभद्रजी अने गणिका कोशानो प्रणय ए मध्यकालना जैन कविओनो विशिष्ट काव्य-विषय रह्यो छे. आ बन्ने युगलने केन्द्रमा राखीने अढळक काव्यो रचायां छे तेवू जाणवा मळे छे. अहीं आ विषयनी ३ अप्रसिद्ध लघु रचनाओ तैयार करी आपवामां आवेल छे. प्रथम रचना 'नेम-राजुलना बारमास' छे. बीजी रचना 'श्रीस्थूलिभद्रनुं चोमासु' छे. अने त्रीजी रचना 'नेमगीत' नामे छे. त्रणे रचनामां नायिका एटले के राजीमती अने कोशानो प्रेम, विरहनी व्याकुळता अने छेवटे वैराग्यनी के धर्मनी प्राप्ति ए रीते वर्णन जोवा मळे छे. त्रणेना कर्ता वाचक विजयशेखरजी छे, जेमनो नामोल्लेख दरेक रचनामां छेवटे जोवा मळे छे. आ रचनाओनी ३ पानांनी प्रत 'कच्छ कोडाय जैन महाजन भण्डार'मां विद्यमान छे, जेनी मने आपवामां आवेली जेरोक्स नकल उपरथी में मारी अल्पबुद्धिए आ सम्पादन करेल छे. भूलचूक के त्रुटि सुधारी लेवा सौने विनंती. श्रीनेम-राजुलना बारमास ॥ राग-गउडी ॥ काहेकू नेम रीसाना, देखत मेरउ चित्त लोभाना, सुणउ कबू वीनती नाहा, लेहूं नवला योवन लाहा ॥१॥ का० आंकणी । नीकी बराति नेम राजा, हय गय रथ साथि दिवाजा; Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ तोरणि आए किउं प्यारे, पसू-पीरि हरी सिधारे ॥२॥ का० प्राणप्रिया किउं जीज‍, कामबानि करी तन छीजइ; हठ हठ न करउ रोस वारउ, छारूंगी तन पालव मींता आठ भवकी प्रीति संभारउ ||३|| का० यादव - करि आवि न चींता; पीया होतउ पूरिन - आसा, कबि हुं अबला रीसावि सखीयन मई काहा करउ हासा ||४|| का० सो तउ मील सुजान मनावि बिन रस चाखि बिरंगी जानी मई तेरी चतुराई, नांही मूढ गमारि हुं चंगी. ॥५॥ का० चकवी दोरि परि फिरि जाई; भए रे बिं (वि) देसी कंता, अब सखी आयउ हि साबन, मेरठ अंगनउ कीजि पावन; मधुरा वरसई मेहा, मोहन विन दुःख अनंता ॥६॥ का० अनुसन्धान ४७ कोई दीजि मोही छेहा ॥७॥ का० अब सखी भाद्रव गाजि, मेह - झडि मंडी पुहवी साजि; बीजरी चिहुं दिसिह चमकि, पीठ पासि बिना हीउं कमकि. ॥८॥ का० Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्च २००९ अब सखी सुंदर आसो, पूरण चंद गयणे उल्लासो; सरोवर कमल बहु बिकसइ, दीवाली कीजि मन हरसे ||९|| का० अब सखी आएउ काती अरदास करूं गुणि राती; अन्न न अन्न न भावई, कोई कंत सलूणउ मेलावि ॥१०॥ का० अब सखी मागसिरि भोगो, काया कोमल साधिउ योगो; मिश्री गोरस पीजि, मिली जोडी तिसी फलीजि. ॥११॥ का० अब सखी पोस मई पोसो, मोही कूडउ न दाखि दोसो; दउहिली राति न जाइ तारा गणतां मोही विहाई ॥१२॥ का० अब सखी मांह कराला, किउं रहि घरि एकली बाला; हींम पडि सांत ते वाइ, बिरहणि कमल कुमलाइ ॥१३॥ का० अब सखी फागुण रमीइं होली खेली दुख सब गमीई; ऊडि ऊडि लाल गुलाला, मुहर्या आंबा अति रसाला. ||१४|| का० अब सखी चैत्त मइ चेतो, करउ करुणा सुख लहुं तेतई; कहुंउ कहुडं कोकला बोलई, दावानल बिरहउ खोलइ ||१५|| का० ५९ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० अब सखी नेम विसाखई, सिद्धि रमणी सिउं चित्त राखई; चूया चंदन तपि गाढा, अब सखी जेठा मासे, आयउ स्यामसुंदर बोलइ टाढा ||१६|| का० बिन काजि फिरि उदासे; सूरध पीलू झलवाइ, अब सखी आसाढ सोहि, गयणे माधव जनमनमोहि; प्रिउ प्रिउ बोलि बाबीहा, क्रीडा कुसमकी करउ मन भाई ॥१७॥ का० नेमना विन जाइ दीहा. || १८ || का दुःख वीसारन राजे, पीछई मिलन कि काजे; श्री गि[र] नारिह प्रीयु पायउ राजुलि राणी सोहागिनि, पेखी नयनई अतिहिं सुहायउ || १९|| का० करी यदुपति अपनी रागिनि; नयक न मायउ न मोहिइ ( ? ) अजरामर पद सारा, दोय सिवमिदरि आरोहई ||२०|| का० दोय भोगवि सुख सुविचारा; मूरति की बलिहारी, अनुसन्धान ४७ सिवादेवी सुत ब्रह्मचारी. ॥२१॥ का० नेम राजुलि पालिउ नेहा, तिम चतुरा हुंयो गुणगेहा; राखउ जिनजी सिउं रंगा, नाम निरमल हि जलगंगा ॥२२॥ का० Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्च २००९ ६१ विवेकशेखर गणिराया, लही मोज नमू निति पाया; विजयशेखर गणि गाविं, बारमासे आनंद पावि. ॥२३|| का० इति श्री नेमनाथ-राजेमती बारमास संपूर्णः ॥ श्रीस्थूलिभद्रनुं चोमासूं ॥ राग - मल्हार || सुंदर पाडलीपुर सिरोमणि, नंद नरपति हेव, सिकडाल मंत्रीसर घरई, लाडिली लाछिलदेवे, तास कूखइ-सरोवर-हंसलई, चित वालिउ भोग-विलासि, सिर धरी गुर-सीख आवीयउं रहिउ कोसि-मंदिर चउमासि ॥१॥ सखी आउरे मेरे प्रीतमकू वेगि वधावि, हीडोलणि सोहि थूलिभद्र रिषिराज. आंकणी० चिहुं दिसई चमकि दामिनी, कोकिला करती सोर, गगनि रजि मेघ उनयउ, मोदि बोले मोर, प्रीउ प्रीउ चवि मुखि बाबीहा, विरहणिकं वधिउ साल, आसाढि आस्या पुरउ नाहा, कठिन ए वरिषा-काल. ॥२॥ स० खीण झडि मंडि झरमरि वरसतउ, घनघटा करि अति घोर, सर भरियां गिर-नीझरण श्रवई, रतिरायनूं बहु जोर, हरीयालडी पुहवी भई, विस्तार वेला वास, मालती केतकी महिमहि, सनेही श्रावण मास. ॥३॥ स० भाद्रवु भोगी मझ दहि, योवन वहि जलधार, परदेस पीआ पंथीया, पदमनि प्रेम संभारि, सारंग राग मल्हार सारउ, गाईयई दोइ गेलि, पूरवणी कंता प्रीति पालउ, मोहन रहउ मन मेलि. ॥४॥ स० Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 62 अनुसन्धान 47 निरमल नीर आसोईयइ, चाहउ चांद्रणी निसि चंद, सरल विकसई पोयणी, राजहंस तरई आनंदि, कामिनी सरिसी करउ क्रीडा, दीपजोति 'झमालि, लील कोजई लाहउ लीजइं, लखिमी पूरण लाल. // 5 // स० कुतिको कातिक मासि मोरउ, पूरवउ प्रभु कोडि, मदन मूरति अवतारिउ, रसिक रितु मोर, योग युगतिइ रमणि तारी, पुहतउ मुनि गुरु पासि, विजय शेखर गाइ वाचक, थूलिभद्र थिर जास. // 6 // स० इति श्री थूलिभद्रनुं चोमासूं संपूर्ण. श्रीनेमगीत If राग- गउडी / / नेम दीजई सुरंगी चूनरी, ओढिगी राजुलि नारि रे, प्रीति ठामि एत हठ क्या कारउ, कंता आई काज मनोहारि रे. // 1 // ने० कारीगरी नखसी बिं दुला, नीकी नवरंगी वणी भाति रे; जरीनउ मुगताफलि जरी, मनमोहन एती खांति रे... // 2 // ने० अपराध विना ति जायइ नहीं, देखउ चित अंतरि सांई रे तरकि भरकि डरीयई नही, कुन सीचसी कामनि कांइ रे... ||3|| ने० - पसूया मि कूडउ दाखीयइ, तजी रोती अबला बाल रे; पुरुषारथ थई एहु नइही भलउ, करउ सार जू नेम दयाल रे... // 4 // ने० बलि जाउंगी कछू छूझवू, मेरे मन एही उछाह रे, योवन-वारी महिकी फली, फूल लागे लेह लाह रे... // 6 // ने० राजा समुद्रविजय के लाडेले, सामलउ ब्रह्मचारी सामि रे, मिले विज( य )शेखर दोकु प्रीतमां, रंग-मुहलि मुगति अभिराम रे...॥७॥ ने इति श्री नेमगीतं //