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परिचायक है। इस शोध के द्वारा उन्होंने अल्प प्रसिद्ध ग्रन्थ तिलमञ्जरी को पाठकों के लिए पाठ्य एवं आस्वाद्य बनाने का काम किया है। इसके लिए वे साधुवाद के पात्र हैं। लीक से हटकर अत्यधिक श्रमपूर्वक किए गए इस शोध कार्य के लिए डॉ. गर्ग को भूरिशः बधाई। भविष्य में भी वे इसी प्रकार साहित्य एवं शास्त्र सेवा में प्रवृत्त रहें यह मेरी शुभकामना है।
प्रो. दीप्ति त्रिपाठी पूर्व निदेशक, राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन आचार्य, संस्कृत विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय
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