Book Title: Tilakmanjari Me Kavya Saundarya
Author(s): Vijay Garg
Publisher: Bharatiya Vidya Prakashan2017

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Page 15
________________ गुरुजी प्रो. देवेन्द्र मिश्र तथा विभाग के आदरणीय गुरुजनों के परामर्श से मुझे तिलकमञ्जरी की काव्यसौन्दर्यात्मक समीक्षा करने का अवसर प्राप्त हुआ, . जिससे मैं तत्क्षण कृतार्थ हुआ। इस शोध कार्य को आठ अध्यायों में विभक्त किया गया है। इन अध्यायों का प्रतिपाद्य इस प्रकार से है - प्रथम अध्याय में काव्य सौन्दर्य पर विचार किया गया है। इसके अन्तर्गत काव्य, विभिन्न आचार्यों द्वारा दी गई काव्य की परिभाषाओं, तथा काव्य के भेदों का वर्णन किया गया है। इसके पश्चात् सौन्दर्य के पाश्चात्य व भारतीय दृष्टिकोणों का वर्णन किया गया है। तदनन्तर सौन्दर्य के क्षेत्र का वर्णन कर काव्य सौन्दर्य की विवेचना की गई है। - द्वितीय अध्याय में महाकवि धनपाल के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला गया है। इसके अन्तर्गत उपलब्ध साक्ष्यों व सामग्री के आधार पर धनपाल के जीवन, स्थितिकाल, प्रतिभा तथा उनकी नौ रचनाओं का वर्णन किया गया है। धनपाल के पिता का नाम सर्वदेव तथा पितामह का नाम देवर्षि था धनपाल ने अपनी नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा के बल पर राजा भोज की सभा में सम्मानित स्थान प्राप्त किया था। धनपाल की प्रसिद्धि का प्रमुख कारण उनकी तिलकमञ्जरी कथा ही है। तिलकमञ्जरी से अलग उनकी आठ रचनाएँ और हैं। . तृतीय अध्याय में शोध के आधार ग्रन्थ तिलकमञ्जरी की सरस कथा का सार देकर तिलकमञ्जरी के चार टीकाकारों-शान्तिसूरि, विजयलावण्यसूरि, पण्यास पद्मसागर तथा ताडपत्रीय टिप्पणकार के पाण्डित्य तथा उनकी कृतियों का उल्लेख किया गया है। ___ चतुर्थ अध्याय में तिलकमञ्जरी के पात्रों के चारित्रिक सौन्दर्य को उद्घाटित किया गया है। तिलकमञ्जरी के अनेक पात्र दिव्य शक्तियों से सम्पन्न हैं तथा उनका सम्बन्ध दिव्य लोकों से भी है। अतः प्रथमतः दिव्य, अदिव्य तथा दिव्यादिव्य भेदों के आधार पर पात्रों का वर्गीकरण किया गया है तत्पश्चात् पुरुष व स्त्री पात्रों की चरित्रगत विशेषताओं का निरूपण किया गया है। (ix)

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