Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam samanvay
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Ratnadevi Jain Ludhiyana

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Page 8
________________ प्रस्तावना इस अनादि संसार-चक्र में परिभ्रमण करते हुए आत्मा को मनुष्य जन्म और आर्यत्व भाव की प्राप्ति हो जाने पर भी श्रुतिधर्म की प्राप्ति दुर्लभ ही है। इस के अतिरिक्त सम्यग्दर्शन भी सम्यक् श्रुत पर ही निर्भर है। अतएव उक्त सर्व साधन मिल जाने पर भी सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिये सम्यक्श्रुत का अध्ययन अवश्य करना चाहिये । __ अब यह प्रश्न उपस्थित होता है कि उक्त प्राप्ति के लिये अध्ययन करने योग्य कौन २ ग्रन्थ ऐसे हैं जिनको सम्यक्श्रुत का प्रतिपादक कहा जाए । इसका स्पष्ट उत्तर यह है कि जिन ग्रंथों के प्रणेता सर्वज्ञ अथवा सर्वज्ञसदृश महानुभाव हैं वे आगम ही

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