Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam samanvay
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Ratnadevi Jain Ludhiyana

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ इस सूत्र को संग्रह ही माना गया है । यह ग्रन्थ सूत्रकार की काल्पनिक रचना नहीं है । कारण कि इस ग्रन्थ में जिन२ विषयों का संग्रह किया गया है, उन सब का आगमों में स्पष्ट रूप से वर्णन है। अतः स्वाध्याय प्रेमियों को योग्य है कि वे भक्ति और श्रद्धापूर्वक जैन आगम तथा तत्त्वार्थसूत्र दोनों का ही स्वाध्याय करें, जिससे भेद भाव मिट कर जैन समाज उन्नति के शिखर पर पहुँच जावे । ___अब रहा यह प्रश्न कि क्या यह ग्रन्थ वास्तव में संग्रह ग्रन्थ है ? सो आगमों का स्वाध्याय करने वाले तो इस ग्रंथ को आगमों से संग्रह किया हुआ मानते ही हैं। इसके अतिरिक्त आचार्यवर्य हेमचन्द्रसूरि ने अपने बनाये हुए 'सिद्धहेमशब्दानुशासन' नाम के व्याकरण में पूज्यपाद उमास्वाति जी महाराज को संग्रह कर्ताओं में उत्कृष्ट संग्रहकर्ता माना है । जैसा कि उन्होंने उक्त ग्रन्थ की स्वोपज्ञवृत्ति में कहा है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 346