Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam samanvay
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Ratnadevi Jain Ludhiyana

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Page 13
________________ उत्कृष्टोऽनपेन २ । २ । ३६ उत्कृष्टार्थादनूपाभ्यां युक्ता द्वितीया स्यात् । अनुसिद्धसेनं कवयः। उपोमास्वातिं संग्रहीतारः ॥३६॥ स्वोपज्ञ बृहद्वृत्ति में भी उक्त आचार्यवर्य ने उक्त सूत्र की व्याख्या में कहा है : "उत्कृष्टऽर्थे वर्तमानात् अनूपाभ्यां युक्ताद् गौणान्नाम्नो द्वितीया भवति । अनुसिद्धसेनं कवयः । अनुमल्लवादिनं तार्किकाः । उपोमास्वातिं संग्रहीतारः। उपजिनभद्रक्षमाश्रमणं व्याख्यातारः तस्मादन्ये हीना इत्यर्थः ॥३६ ॥" __ आचार्य हेमचन्द्र का समय विक्रम की १२ वीं शताब्दी सभी विद्वानों को मान्य है। आपके कथन से यह भली प्रकार सिद्ध हो जाता है कि पूज्यपाद उमास्वाति संग्रह करने वालों में सबसे बढ़कर संग्रह करने वाले माने गये हैं । आगमों से संग्रह किये जाने से यह ग्रन्थ भी संग्रह ग्रंथ माना गया है।


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