Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam samanvay
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Ratnadevi Jain Ludhiyana
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( २४६ ) पउमदहस्स दक्खिणिल्लेणं तोरणं रोहिना महाणई पवढा समाणी सोलस पंचुत्तरे जोयण सए पंच य एगूण वीसइ भाए जोयणस्स दाहिणाभिमुही पव्व. एणंगंता महया घडमुहपवित्तिएणं मुत्तो वलिहार संठिराणं साइरेग दो जोयण सइएणं पवाएणं पवडा ........तस्सणं महा पउमद्दहस्स उत्तरिल्लेणं तोरणे णं हरिकंता महाणई पढा समाणी सोलस पंचुत्तरे जोयणसए पंच य एगण वीसइ भाए जोयणस्स उत्तराभिमही पव्वएणं गंता महया घडमुह पव. त्तिएणं मुत्तावलिहार संठिरण साइरेग दुजोयण सइराणं पवाएणं पवडइ ।। जंबू द्वीप० ४ वक्षस्कार सू०८०
तस्सणं तिगिछिद्दहस्स दक्खिणिल्लेणं तोरणेणं हरि महाणई पवढा समाणी सत्त जोत्रण सहस्साई चत्तारि अ एकवीसे जो अणसए एगं च एगण वीसइ भागं जो अणस्स दाहिणाभिमही पव्वएणं गंता महया घड मुह पवित्तिएणं जाव साइरेग चउ
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