Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam samanvay
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Ratnadevi Jain Ludhiyana
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( २६३ )
निम्नलिखित पाठ तत्त्वार्थसू० अ० ६ सू० ११ वें से गम्बन्ध रखता है। । पादोसियाणं भंते ! किरिया कतिविहा प० ? गोयमा ! तिविहा प० तं०-जेणं अप्पणो वा परस्स । तदुभयस्स वा असुभं मणं संपधारेति, सेत्तं पादोसिया किरिया, पारियाबणियाणं भंते ! किरिया कतिविहाप०? गोयमा! तिविहा प०२०-जेणंथप्पणो वा परस्स वा तदुभयस्स वा अस्सायं वेदणं उदीरेति सेत्तं पारियावणिया किरिया, पाणातिवाय किरियाणं भंते ! कतिविहा प० गोयमा! तिविहा प० तं०--जेणं अप्पारणं वा परं वा तदुभयं वा जीवियाश्र ववरोवेइ सेतं पाणाइवाय किरिया ।
प्रज्ञापना सू० पद २२ सू० २७६ निम्नलिखित पाठ तत्त्वार्थ स०अ० स० १० से सम्बन्ध खता है। , बहु दुक्खाहु जंतवो--
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