Book Title: Tattvanushasanadi Sangraha Author(s): Manoharlal Shastri Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti View full book textPage 8
________________ ५ मोक्षपंचाशिका। इसके कर्ताका नाम मालूम नहीं हुआ। श्रीयुत बाबू जुगलकिशोरजी मुख्तारके पास इसकी प्रति थी, उसी परसे यह छपाई गई है। ६ अध्यात्मतरंगिणी । सोमदेव नामके कई आचार्य हो गये हैं। मालूम नहीं. उनमेंसे यह किस सोमदेवकी बनाई हुई है । यदि यशस्तिलकके कर्त्ता ही इसके कर्ता हों, तो उनका समय विक्रमकी ११ वीं शताब्दि है । उन्होंने अपना यशस्तिलक शक संवत् ८८१ में बनाकर समाप्त किया है । इसकी एक प्रति हमें पं० इन्द्रलालजी साहित्यशास्त्रीके द्वारा जयपुरके किसी प्राचीन पुस्तकालयसे प्राप्त हुई थी। उसी परसे इसका सम्पादन हुआ है। ७पात्रकेसरि-स्तोत्र । इसका वास्तविक नाम बृहत्पञ्चनमस्कार स्तोत्र मालूम होता है । इसके कर्ता आचार्य पात्रकेसरी हैं, इस कारण इसे 'पात्रकेसरिस्तोत्र' भी कहते हैं । विद्यानन्दि और पात्रकेसरी एक ही हैं, यह हम अपने 'स्याद्वादविद्यापति विद्यानन्दि' नामक लेखमें (जैनहितैषी वर्ष ९ अंक ९) अच्छी तरह सिद्ध कर चुके हैं । विद्यानन्दि विक्रमकी ९ वीं शताब्दिमें हुए हैं, यह भी उक्त लेखमें प्रमाणित किया जा चुका है। इस ग्रन्थके साथ एक टीका भी प्रकाशित की जाती है; परन्तु टीकाकर्ता अपना नाम प्रकट नहीं करते हैं। स्वर्गीय दानवीर सेठ माणिकचन्दजीके पुस्तक-भाण्डारमें इसकी एक बहुत जीर्ण और प्राचीन प्रति थी, उसी परसे यह स्तोत्र छपाया गया है। यह स्तोत्र केवल स्तोत्र ही नहीं, किन्तु एक अपूर्व दार्शनिक ग्रन्थ है । इसमें जैनधर्मकी अनेक बातों पर एक विलक्षण ही प्रकाश डाला गया है। ८ अध्यात्माष्टक । इसके कर्ता वे ही वादिराजसूरि जान पड़ते हैं जिन्होंने शक संवत् ९४७ में पार्श्वनाथचरित नामक ग्रन्थ बनाया है और जो इसी ग्रन्थमालामें प्रकाशित हो चुका है। ९ द्वात्रिंशतिका । इसके कर्ता अमितगतिसूरि हैं और वे शायद सुभाषितरत्नसन्दोह, धर्मपरीक्षा, अमितिगतिश्रावकाचार आदि ग्रन्थोंके कर्ता प्रसिद्ध अमितिगतिसे पृथक् नहीं हैं । सुभाषित-रत्नसन्दोह वि० सं० १०७० में समाप्त हुआ है, अतएव उनका समय विक्रमकी ग्यारहवीं शताब्दि निश्चित है । ( विशेष जाननेके लिए देखो विद्वद्रत्नमालाका तीसरा लेख ।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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