Book Title: Tattvanirnaya Prasada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Amarchand P Parmar

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Page 5
________________ प्रष्ट्र अन्य आगमोंके प्रमाण होनेमें हेतु .... .... .... .... .... .... ९७ भगवत्मणीत आगमके प्रमाण होने में हेतु .... .... . .... .... .... ९८ भगवत्के सत्योपदेशका खंडन करनेकी परवादीकी अशक्यता.... .... ९८ ये अशक्यता होते हुवे भी अन्यमतावलंबी तिसकी उपेक्षा क्यों करते । हैं उसका उत्तर .... तप और योगाभ्यासादिसें मोक्षप्राप्ती होवेगी तो जिनेंद्रका मार्ग अंगीकार करनेकी क्या आवश्यकता? तिसका उत्तर .... .... .... ९९ परवादियोंका उपदेश भगवत्के मार्गको किंचिन्मात्र भी कोप वा आक्रोश नहीं कर सकते हैं. परवादियोंके मतमें जे उपद्रव हुऐ हैं वे भगवान्के शासनमें नही हुवे १०१ परवादीयोंके अधिष्ठाताकी परस्पर विरुद्ध बातें .... अयोग वस्तुयोंका पुनः व्यवच्छेद .... .... .... भगवान्के उपदेश की बराबरी अन्यमत नहीं कर सकता. १०८ परतीर्थनाथोंने जिनेंद्रकी मुद्राभी नहीं सीखी. .... अरिहंत, शिव, विष्णु और ब्रह्माकी मूर्ति. .... .... भगवंतके शासनकी स्तुति. .... .... .... .... स्तुतिकारने दो वस्तुयें अनुपम करी हैं..... .... . अज्ञानियों को प्रति वोध करनेकी स्तुतिकारकी असमर्थता. .... .... ११२ भगवान्की देशना भूमिकी स्तुति ..... .... .... .... .... पर देवोंका साम्राज्य वृथा सिद्ध किया है .... .... .... .... असत्वादी और पंडित जनोंके और मत्सरी जनके लक्षणका वर्णन ११४ परवादीयों समक्ष अवघोषणा अपना पक्षपातरहितपणा .... .... ११५ भगवंतकी वाणीकी स्तुति .... .... .... .... .... .... ११६ पक्षपातरहित होकर गुणविशिष्ट भगवंतको समुच्चय नमस्कार स्तुतिका ___ स्वरूप और समाप्ति.... .... .... .... ११७ बालावबोध करनेका संवत्. ... ... .... .... .... .... ११८ १०९ . .. .. ११२ W (४) चतुर्थ स्तंभ-श्री हरिभद्रसूरिविरचित लोकतत्व निर्णयका स्वरूप ११८-१४६ मंगलकारका मंगलाचरण । .... .... .... ११८ पर्षदाकी परीक्षाका उपदेश, उपदेशके अयोग्य पर्षदाके लक्षण ........ ११९ अयोग्य पर्षदाको उपदेश देना निष्फल .... .... . श्रोताको बोध नहोवे उसमें वक्ताकाही अज्ञपणा है ऐसी आशंकाका रतद्वारा उत्तर .... ........... .. ... ... १२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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