Book Title: Tattvanirnaya Prasada
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Amarchand P Parmar

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Page 4
________________ अनुक्रमणिका. (१) प्रथम स्तंभ - प्राकृत भाषा और वेदोंका संक्षेप वर्णन. मंगलाचरण मतमतांतरों के पुस्तकविषयक विवेचन .... 1200 *** प्राकृत भाषाविषयक शंकासमाधान वेदोंमें जो वर्णन है तिसका संक्षेप मात्र दिग्दर्शनरूप बीजक (२) द्वितीय स्तंभ- - देवविषयक वर्णन महादेव स्वरूपका वर्णन Jain Education International **** वस्तुमात्र स्याद्वाद मुद्रा करके मुद्रित है। स्वयंभू वर्णन शिवशंकरादि नामोंका वर्णन (३) तृतीय स्तंभ-- श्री हेमचंद्राचार्यकृत श्रीवीरद्वात्रिंशिकाका अर्थ निर्माण किया है। द्वात्रिंशिका अर्थ लिखनेका प्रयोजन .... २५-८३ २५ २६ ३१ ३१ .... ३८ एकहि जिन अर्हन् ब्रह्मा विष्णु महादेव रूप व्यात्मक है, अन्य नहीं.... लौकिक ब्रह्माविष्णुमहादेवमें उनकेही शास्त्रीद्वारा ज्ञानदर्शन चारित्र नहींहै ४२ ज्ञानदर्शन चारित्ररहित मुक्ति के पास्ते नहीं होते हैं, अर्हन् शब्दका स्वरूप. ७३ अष्ट प्रतिहार्य का वर्णन तथा भर्तृहरिके कथानुसार ब्रह्मादिका स्वरूप इत्यादि वर्णन ..... For Private & Personal Use Only .... 00.0 .... www. peso .... पृष्ठ. १-२५ १ ४ ५ १३ ८३-११८ ८३ ८४ ८६ ..... ८७ स्तुतिकारका मंगलाचरण आत्मरूप शब्दका और परमात्माका अर्थ महावीर और हेमचंद्राचार्यका प्रश्नोत्तर रूप काव्य स्तुतिकारकी निरभिमानिनताका और पूर्वाचार्योंकी बहुमानताका काव्य ८६ भगवान में अयोग व्यवच्छेदका काव्य ...... असत् उपदेशकपणेका व्यवच्छेदका काव्य, नवतत्व, वेद, बौद्ध, सांख्यादि अन्यमतवालोंका कथन तुरंगशृंग समान है भगवान में व्यर्थ दयालुपणेका व्यवच्छेदका काव्य असत्य पक्षपातियों का स्वरूप भगवान के शासनका महत्व वर्णन भगवान के शासनका शंकाकारको उपदेश .... .... 18.0 .... .... .... ८८ ९२ ९३ ९४ ९५ www.jainelibrary.org .... ७७ **** 1946

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