Book Title: Tattvamimansa
Author(s): Sunandaben Vohra
Publisher: Nilaben and Ashokbhai Choksi

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Page 15
________________ अनन्तगुणे परे ॥ ४० ॥ अप्रतिघाते || ४१ ।। अनादिसम्बन्धे च ॥ ४२ ॥ सर्वस्य ॥ ४३ ॥ तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्या चतुर्भ्यः ॥ ४४ ॥ निरुपभोगमन्त्यम् || ४५ ॥ गर्भसम्मूर्छनजमाद्यम् || ४६ ॥ वैकियमौपपातिकम् ॥ ४७ ॥ लब्धिप्रत्ययं च ॥ ४८ ॥ शुभं विशुद्धमव्याघाति चाहारकं चतुर्दशपूर्वधरस्यैव ॥ ४९ ॥ नारकसम्मूर्छिनो नपुंसकानि ॥ ५० ॥ न देवाः ॥ ५१ ॥ औपपातिकचरमदेहोत्तमपुरुषाऽसंख्येयवर्षायुषोऽनपवर्त्यायुषः । । ५२ ।। तृतीयोऽध्यायः रत्नशर्करावालुकापङ्कधूमतमोमहातमः प्रभा भूमयो घनाम्बुवाताकाशप्रतिष्ठाः सप्ताधोऽधः पृथुतराः || १ || तासु नरकाः ॥ २ ॥ नित्याशुभतरलेश्यापरिणामदेहवेदनाविक्रियाः ॥ ३ ॥ परस्परोदीरितदुःखाः ॥। ४ ॥ संक्लिष्टासुरोदीरितदुःखाश्च प्राक् चतुर्थ्याः || ५ || तेष्वेकत्रिसप्तदशसप्तदशद्वाविंशतित्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाः सत्त्वानां परा स्थितिः || ६ || जम्बूद्वीपलवणादयः शुभनामानो द्वीपसमुद्राः ॥ ७ ॥ द्विर्द्धिर्विष्कम्भाः पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणो वलयाकृतयः ॥ ८ ॥ तन्मध्ये मेरुनाभिर्वृत्तो योजनशतसहस्रविष्कम्भो जम्बूद्वीपः ॥ ९ ॥ तत्र भरतहैमवतहरिविदेहरम्यक हैरण्यवतैरावतवर्षाः क्षेत्राणि ।। १० ।। Jain Education International १२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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