Book Title: Tattvamimansa
Author(s): Sunandaben Vohra
Publisher: Nilaben and Ashokbhai Choksi

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Page 13
________________ विशुद्धिक्षेत्रस्वामिविषयेभ्योऽवधिमनः पर्याययोः ॥ २६ ॥ मतिश्रुतयोर्निबन्धः सर्वद्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु ॥ २७ ॥ रूपिष्ववधेः ।। २८ ।। तदनन्तभागे मनःपर्यायस्य ।। २९ ।। सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य ॥ ३० ॥ एकादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्भ्यः ॥ ३१ ॥ मतिश्रुताऽवधयो विपर्ययश्च ॥ ३२ ॥ सदसतोरविशेषाद् यदृच्छोपलब्धेरुन्मत्तवत् ॥ ३३ ॥ नैगमसंग्रहव्यवहारर्जुसूत्रशब्दा नयाः ।। ३४ ।। आद्यशब्दौ द्वित्रिभेदौ ॥ ३५ ॥ द्वितीयोऽध्यायः औपशमिक क्षायिकौ भावौ मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्त्वमौदयिकपारिणामिकौ च ।। १ ।। द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदा यथाक्रमम् || २ || सम्यक्त्वचारित्रे ॥ ३ ॥ ज्ञानदर्शनदानलाभभोगोपभोगवीर्याणि च ॥ ४ ॥ ज्ञानाज्ञानदर्शनदानादिलब्धयश्चतुस्त्रित्रिपञ्चभेदाः यथाक्रमं सम्यक्त्वचारित्रसंयमासंयमाश्च || ५ || गतिकषायलिङ्गमिथ्यादर्शनाऽज्ञानाऽसंयताऽसिद्धत्वलेश्याश्चतु श्चतुस्त्र्येकैकैकैकषड्भेदाः || ६ || जीवभव्याभव्यत्वादीनि च ॥ ७ ॥ उपयोगो लक्षणम् || ८ ॥ सद्विविधोऽष्टचतुर्भेदः ॥ ९ ॥ संसारिणी मुक्ताश्च ॥ १० ॥ समनस्काऽमनस्काः ॥ ११ ॥ संसारिणस्त्रसस्थावराः ॥ १२ ॥ Jain Education International १० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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