Book Title: Tattvagyan Pathmala Part 2
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 28
________________ तत्त्वज्ञान पाठमाला भाग -२ तीर्थंकर भगवान महावीर आषाढ़ शुक्ला ६ के दिन बालक वर्द्धमान माँ के गर्भ में आए। बालक वर्द्धमान जन्म से ही स्वस्थ, सुन्दर एवं आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे। वे दोज के चन्द्र की भाँति वृद्धिंगत होते हुए अपने वर्द्धमान नाम को सार्थक करने लगे। उनकी कंचनवर्णी काया अपनी कांति से सबको आकर्षित करती थी। उनके रूप सौंदर्य का पान करने के लिए सुरपति (इन्द्र) ने हजार नेत्र बनाये थे। वे आत्मज्ञानी विचारवान, विवेकी और निर्भीक बालक थे। डरना तो उन्होंने सीखा ही न था। वे साहस के पुतले थे। अतः उन्हें बचपन से ही वीर, अतिवीर, कहा जाने लगा था। उनके पाँच नाम प्रसिद्ध हैं - वीर, अतिवीर, सन्मति, वर्द्धमान और महावीर। वे प्रत्युत्पन्नमति थे और विपत्तियों में अपना संतुलन नहीं खोते थे। एक दिन अपनी बाल-सुलभ क्रीड़ाओं से माता-पिता, परिजनों और पुरजनों को आनन्द देने वाले बालक वर्द्धमान अन्य राजकुमारों के साथ क्रीड़ावन में खेल रहे थे। खेल ही खेल में अन्य बालकों के साथ वर्द्धमान भी एक पेड़ पर चढ़ गये। इतने में ही एक भयंकर काला सर्प आकर वृक्ष से लिपट गया और क्रोधावेश में वीरों को भी कम्पित कर देने वाली फैंकार करने लगा। विषम स्थिति में अपने को पाकर अन्य बालक तो भय से काँपने लगे पर धीर-वीर बालक वर्द्धमान को वह भयंकर नागराज विचलित न कर सका । महावीर को अपनी ओर निर्भय और निःशंक आता देख नागराज निर्मद होकर स्वयं अपने रास्ते चलता बना। इसी प्रकार एक बार एक हाथी मदोन्मत्त हो गया और गजशाला के स्तम्भ को तोड़कर नगर में विप्लव मचाने लगा। सारे नगर में खलबली मच गई। सभी लोग घबड़ाकर यहाँ-वहाँ भागने लगे पर राजकुमार वर्द्धमान ने अपना धैर्य नहीं खोया तथा शक्ति और युक्ति से शीघ्र ही गजराज पर काबू पा लिया। राजकुमार वर्द्धमान की वीरता व धैर्य की चर्चा नगर में सर्वत्र होने लगी। वे प्रतिभासम्पन्न राजकुमार थे। बड़ी-बड़ी समस्याओं का समाधान चुटकियों में कर दिया करते थे। वे शान्त प्रकृति के तो थे ही, युवावस्था में प्रवेश करते ही उनकी गंभीरता और बढ़ गई। वे अत्यन्त एकान्तप्रिय हो गये। वे निरन्तर चिन्तवन में ही लगे रहते थे और गूढ़ तत्त्वचर्चाएँ किया करते थे। तत्त्वसम्बन्धी बड़ी से बड़ी शंकाएँ तत्त्व-जिज्ञासु उनसे करते थे और बातों ही बातों में वे उनका समाधान कर देते थे। बहुत-सी शंकाओं का समाधान तो उनकी सौम्य आकृति ही कर देती थी। बड़े-बड़े ऋषिगणों की शंकाएँ भी उनके दर्शन मात्र से शांत हो जाती थीं। वे शंकाओं का समाधान न करते थेवरन् स्वयं समाधान थे। एक दिन वे राजमहल की चौथी मंजिल पर एकान्त में विचार-मग्न बैठे थे। उनके बाल-साथी उनसे मिलने को आए और माँ त्रिशला से पूछने लगे 'वर्द्धमान' कहाँ है? गृहकार्य में संलग्न माँ ने सहज ही कह दिया ऊपर' । सब बालक ऊपर को दौड़े और हाँफते हुए सातवीं मंजिल पर पहुँचे, पर वहाँ वर्द्धमान को न पाया। जब उन्होंने स्वाध्याय में संलग्न राजा सिद्धार्थ से वर्द्धमान के सम्बन्ध में पूछा तो उन्होंने बिना गर्दन उठाए ही कह दिया 'नीचे' । माँ और पिता के परस्पर विरुद्ध कथनों को सुनकर बालक असमंजस में पड़ गए। अन्ततः उन्होंने एक-एक मंजिल खोजना आरंभ किया और चौथी मंजिल पर वर्द्धमान को विचार-मग्न बैठे पाया । सब साथियों ने उलाहने के स्वर में कहा, 'तुम यहाँ छिपे-छिपे दार्शनिकों की सी मुद्रा में बैठे हो और हमने सातों मंजिलें छान डालीं। 'माँ से क्यों नहीं पूछा?' वर्द्धमान ने सहज प्रश्न किया। साथी बोले “पूछने से ही तो सब कुछ गड़बड़ हुआ, माँ कहती हैं - 'ऊपर' और पिताजी 'नीचे'। कहाँ खोजें? कौन सत्य है?" वर्द्धमान ने कहा “दोनों सत्य हैं, मैं चौथी मंजिल पर होने से माँ की अपेक्षा ऊपर' और पिताजी की अपेक्षा 'नीचे' हूँ, क्योंकि माँ पहिली मंजिल पर और पिताजी सातवीं मंजिल पर हैं। इतना भी नहीं समझते? ऊपर-नीचे की स्थिति सापेक्ष हैं। बिना अपेक्षा ऊपरनीचे का प्रश्न ही नहीं उठता। वस्तु की स्थिति पर से निरपेक्ष होने पर भी उसका कथन सापेक्ष होता है।" इस प्रकार बालक वर्द्धमान गहन सिद्धान्तों को बालकों को भी सहज समझा देते थे। दुनियाँ ने उन्हें अपने रंग में रंगना चाहा पर आत्मा के रंग में सर्वांग सराबोर महावीर पर दुनियाँ का रंग न चढ़ा । यौवन ने अपने प्रलोभनों के पांसे फैंके किन्तु उसके भी दाँव खाली गए। माता-पिता की ममता ने उन्हें रोकना चाहा पर माँ के आंसुओं की बाढ़ भी उन्हें बहा न सकी। उनके रूप-सौंदर्य एवं बल-विक्रम से प्रभावित हो अनेक राजागण अपनी अप्सराओं के सौंदर्य को लज्जित कर देने वाली कन्याओं की शादी उनसे करने के प्रस्ताव लेकर आये, पर अनेक राजकन्याओं के हृदय में वास करने वाले महावीर का मन उन कन्याओं में न था। माता-पिता ने भी उनसे शादी करने का 28

Loading...

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35