Book Title: Tapagachhiya Tithi Pranalika Ek Tithi Paksh Author(s): Vijaynandansuri Publisher: Vijaynandansuri View full book textPage 4
________________ और सप्तमी एक साथ जोड कर सप्तमी के दिन की जाती है । अषाड शुक्ल-6 का क्षय होने पर श्री महावीरस्वामी का च्यवन कल्याणक भी पंचमी के बाद सप्तमी के दिन छठ और सप्तमी साथ मानकर मनाया जाता है। च्यवन कल्याणक का जुलुस भी उसी दिन निकाला जाता है । क्योंकि पंचमी के बाद ही प्रभु का च्यवन हुआ था । ठीक उसी प्रकार वैशाख शुक्ल-6, वैशाख कृष्ण-6 और श्रावण शुक्ल-6 आदि का क्षय हो तब पंचमी के बाद आनेवाली सप्तमी के दिन छतु और सप्तमी एक साथ मानकर उसी दिन छठ्ठ संबंधित सालगिराह मनायी जाती है। 7 (सप्तमी) का क्षय होने पर सप्तमी का क्षय किया जाता है और सप्तमी की आराधना छठ - सप्तमी को जोड कर उसी छठ के दिन की जाती है । 8 (अष्टमी) का क्षय होने पर सप्तमी का क्षय किया जाता है । और छठ-सप्तमी दोनों को जोडकर छठ के दिन ही छठ और सप्तमी दोनों तिथि की आरधना की जाती है । पंचांग में बतायी गयी सप्तमी के दिन अष्टमी की आराधना की जाती है किन्तु सप्तमी और अष्टमी इकट्ठी नहीं की जाती है। 9 (नवमी) का क्षय होने पर 9 का क्षय किया जाता है । 9 की आराधना 8-9 को जोडकर अष्टमी के दिन नहीं की जाती है किन्तु 10 के दिन 9-10 जोडकर की जाती है। 10 (दशमी) का क्षय होने पर 10 का क्षय किया जाता है और 9 के दिन 9-10 जोडकर 9-10 की आराधना 9 के दिन ही की जाती है । अर्थात् श्रीपार्श्वनाथ प्रभु का जन्मकल्याणक 9-10 को जोडकर 9 के दिन ही किया जाता है । 10-11 जोडकर 11 के दिन पोष दशमी की आराधना नहीं की जाती है, ठीक उसी प्रकार 10 की सालगिराह भी (भोयणी आदि तीर्थ की) 9 के दिन ही 9-10 जोडकर मनायी जाती है। 11 (एकादशी) का क्षय हो तब 10 का क्षय किया जाता है ।श्रीपार्श्वनाथ प्रभु का जन्मकल्याणक 9-10 को जोडकर 9 के दिन ही किया जाता है । 10-11 जोडकर 11 के दिन पोष दशमी की आराधना नहीं की जाती है, और उपर बताया उसी प्रकार उनके अगले दिन अर्थात् 9 के दिन 9-10 दोनों तिथिओं की आराधना की जाती है। 12 (द्वादशी) का क्षय होने पर 12 का क्षय किया जाता है । और 12 की आराधना 11-12 जोडकर 11 दिन नहीं की जाती है । किन्तु 13 के दिन 12-13 जोडकर 13 के दिन की जाती है । 13 (त्रयोदशी) का क्षय होने पर 13 का क्षय किया जाता है और 12 के दिन 12-13 जोडकर दोनों तिथि की आराधना 12 के दिन की जाती है । 14 (चतुर्दशी) का क्षय होने पर 13 का क्षय किया जाता है । और 12 के दिन 12-13 जोडकर 12-13 दोनों तिथि की आराधना 12 के दिन ही की जाती है किन्तु 13-14 इकट्ठा करके 14 के दिन 13 की आराधनानहीं की जाती है । अत एव चैत्र शुक्ल-14 के क्षय होने पर श्री महावीर जन्मकल्याणक 13-14 साथ मानकर 14 के दिन मनाया जाता नहीं है । किन्तु 13 का क्षय करके 12-13 जोडकर 12 के दिन मनाया जाता है । 13 की सालगिराह हो वहाँ भी 14 के क्षय होने पर उपर बताया उसी प्रकार से हर वक्त 12-13 जोडकर 12 के दिन ही मनाया जाता है। पूर्णिमा या अमावास्या का क्षय होने पर 13 का ही क्षय होता है। ____ 15 (पूर्णिमा) या 30 (अमावास्या) का क्षय होने पर भी 13 का ही क्षय किया जाता है और 12 के दिन 12-13 जोडकर दोनों तिथि की आराधना की जाती है, और पंचांग की 13 के दिन 13 होने पर भी 14 की जाती है और पंचांग की 14 के दिन 14 होने पर भी पूर्णिमा या अमावास्या की जाती है किन्तु 14-15 या 14-30 जुडा जाता नहीं है । और इस प्रकार चतुर्दशी-पूर्णिमा व चतुर्दशी अमावास्या स्वरूप संयुक्त पर्व की आराधना निराबाध हो शकती है । साथ साथ __ चतुर्दशी-पूर्णिमा व चतुर्दशी-अमावास्या के छठु तप की आराधना भी हो शकती है।Page Navigation
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