Book Title: Tap Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf View full book textPage 3
________________ ६२ जैन धर्म और दर्शन ऊपर के कथन से महावीर के समकालीन और उत्तरकालीन निर्ग्रन्थ-परंपरा की तपस्या प्रधान वृत्ति में तो कोई संदेह रहता ही नहीं, पर अब विचारना यह है कि महावीर के पहले भी निग्रन्थ-परंपरा तपस्या-प्रधान थी या नहीं? इसका उत्तर हमें 'हाँ' में ही मिल जाता है । क्योंकि भ• महावीर ने पार्वापत्यिक निग्रन्थ-परंपरा में ही दीक्षा ली थी । और दीक्षा के प्रारम्भ से ही तप की ओर झुके थे। इससे पाश्चापत्यिक-परंपरा का तप की ओर कैसा झुकाव था इसका हमें पता चल जाता है । भ० पार्श्वनाथ का जो जीवन जैन ग्रन्थों में वर्णित है उसको देखने से भी हम यही कह सकते हैं कि पार्श्वनाथ को निर्ग्रन्थ-परंपरा तपश्चर्या-प्रधान रहीं। उस परंपरा में भ० महावीर ने शुद्धि या विकास का तत्त्व अपने जीवन के द्वारा भले ही दाखिल किया हो पर उन्होंने पहले से चली आने वाली णापत्यिक निर्ग्रन्थ-परंपरा में तपोमार्ग का नया प्रवेश तो नहीं किया । इसका सबूत हमें दूसरी तरह से भी मिल जाता है। जहाँ बुद्ध ने अपनी पूर्वजीवनी का वर्णन करते हुए अनेकविध तपस्याओं की निःसारता' अपने शिष्यों के सामने कही है वहाँ निन्थ तपस्या का भी निर्देश किया है। बुद्ध ने शातपुत्र महावीर के पहले ही जन्म लिया था और गृहत्याग करके तपस्वी-मार्ग स्वीकार किया था। उस समय में प्रचलित अन्यान्य पंथों की तरह बुद्ध ने निग्रन्थ पंथ को भी थोड़े समय के लिए स्वीकार किया था और अपने समय में प्रचलित निग्रन्थ-तपस्या का आचरण भी किया था। इसीलिए जब बुद्ध अपनी पूर्वाचरित तपस्याओं का वर्णन करते हैं, तब उसमें हूबहू निग्रन्य-तपस्याओं का स्वरूप भी आता है जो अभी जैन ग्रन्थों और जैन-परंपरा के सिवाय अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता । महावीर के पहले जिस निर्ग्रन्थ-तपस्या का बुद्ध ने अनुष्ठान किया वह तपस्या पाापत्यिक निर्गन्थ-परंपरा के सिवाय अन्य किसी निन्य-परंपरा की सम्भव नहीं है । क्योंकि महावीर तो अभी मौजूद ही नहीं थे और बुद्ध के जन्मस्थान कपिलवस्तु से लेकर उनके साधनास्थल राजगृही, गया, काशी आदि में पापित्यिक निर्ग्रन्थ-परंपरा का निर्विवाद अस्तित्व और प्राधान्य था। जहाँ बुद्ध ने सर्व प्रथम धर्मचक्र प्रवर्तन किया वह सारनाथ भी काशी का ही एक भाग है, और वह काशी पार्श्वनाथ की जन्मभूमि तथा तपस्याभूमि रही है। अपनी साधना के समय जो बुद्ध के साथ पाँच दूसरे भिक्षु थे वे बुद्ध को छोड़कर सारनाथइसिपत्तन में ही श्राकर अपना तप करते थे। आश्चर्य नहीं कि वे पाँच भिक्षु निम्रन्थ-परपरा के ही अनुगामी हों। कुछ भी हो, पर बुद्ध ने निर्ग्रन्थ तपस्या का, १. देखो पृ० ५८, टि० १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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