Book Title: Tap Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf View full book textPage 7
________________ 66 जैन धर्म और दर्शन बुद्ध को तप की पूर्व परंपरा छोड़कर ध्यान-समाधि की परंपरा पर ही अधिक भार देना था जब कि महावीर को तप की पूर्व परंपरा बिना छोड़े भी उसके साथ आध्यात्मिक शुद्धि का संबन्ध जोड़कर ही ध्यान-समाधि के मार्ग पर भार देना था। यही दोनों की प्रवृत्ति और प्ररूपणा का मुख्य अन्तर था। महावीर के और उनके शिष्यों के तपस्वी-जीवन का जो समकालीन जनता के ऊपर असर पड़ता था उससे बाधित होकर के बुद्ध को अपने भितुसङ्घ में अनेक कड़े नियम दाखिल करने पड़े जो बौद्ध विनय-पिटक को देखने से मालूम हो जाता है। तो भी बुद्ध ने कभी बाह्य-तप का पक्षपात नहीं किया बल्कि जहाँ प्रसंग आया वहाँ उसका परिहास ही किया / खुद बुद्ध की इस शैली को उत्तरकालीन सभी बौद्ध लेखकों ने अपनाया है फलतः अाज हम यह देखते हैं कि बुद्ध का देहदमन-विरोध बौद्ध संघ में सुकुमारता में परिणत हो गया है, जब कि महावीर का बाह्य तपोजीवन जैन-परंपरा में केवल देहदमन में परिणत हो गया है जो कि दोनों सामुदायिक प्रकृति के स्वाभाविक दोष हैं, न कि मूलपुरुषों के आदर्श के दोष / आचार-विचार तथागत बुद्ध ने अपने पूर्व-जीवन का वर्णन करते हुए अनेकविध आचारों का वर्णन किया है, जिनको कि उन्होंने खुद पाला था। उन आचारों में अनेक आचार ऐसे हैं जो केवल निर्ग्रन्थ-परंपरा में ही प्रसिद्ध हैं और इस समय भी वे आचार आचारांग, दशवैकालिक आदि प्राचीन सूत्रों में निग्रन्थ के श्राचार रूप से वर्णित हैं / वे अाचार संक्षेप में ये हैं-नग्नत्व-वस्त्रधारण न करना, 'अाइए भदन्त!' 'खड़े रहिये भदन्त !' ऐसा कोई कहे तो उसे सुना-अनसुना कर देना, सामने लाकर दी हुई भिक्षा का, अपने उद्देश्य से बनाई हुई भिक्षा का, और दिये गए निमन्त्रण का अस्वीकार; जिस बर्तन में रसोई पकी हो उसमें से सीधी दी गई भिक्षा का तथा खल आदि में से दी गई भिक्षा का अस्वीकार; जीमते हुए दो में से उठकर एक के द्वारा दी जाने वाली भिक्षा का, गर्भिणी स्त्री के द्वारा दी हुई भिक्षा का और पुरुषों के साथ एकान्त में स्थित ऐसी स्त्री के द्वारा दी जानेवाली भिक्षा का, बच्चों को दूध पिलाती हुई स्त्री के द्वारा दी जानेवाली भिक्षा का अस्वीकार; उत्सव, मेले और यात्रादि में जहाँ सामूहिक भोजन बना हो वहाँ से भिक्षा का 1. उदाहरणार्थ- बनस्पति आदि के जन्तुओं की हिंसा से बचने के लिए चतुर्मास का नियम-बौद्ध संघनो परिचय पृ० 22 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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