Book Title: Swapnashastra Ek Mimansa Author(s): Mishrimalmuni Publisher: Z_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf View full book textPage 2
________________ .४८४ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड सूचक बताये । इसी प्रकार श्रेयांसकुमार ने भी भगवान ऋषभदेव को दान देने से पूर्व शुभ स्वप्न देखा जिसमें श्याम वर्ण मेरु पर्वत को अमृत से सींचा था। इसका सम्बन्ध भगवान आदिनाथ को दान देने से था ।२ इसी रात को श्रेयांस कुमार के पिता राजा सोमप्रभ एवं श्रेष्ठी सुबुद्धि ने भी स्वप्न देखा जिसका भाव था कि श्रेयांस को कुछ विशिष्ट लाभ प्राप्त होगा। ये स्वप्न प्रतीकात्मक थे और दूसरे ही दिन सत्य सिद्ध हो गये। छद्मस्थ अवस्था में भगवान महावीर ने भी अस्थिग्राम में शूलपाणि यक्ष के उपद्रव के बाद एक मुहूर्त भर निद्रा ली जिसमें १० स्वप्न देखे थे, जिनका अर्थ उत्पल नैमित्तिक ने लोगों को बताया। भरत चक्रवर्ती की तरह ही मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त राजा के १६ स्वप्न भी दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं में काफी प्रसिद्ध है । इन स्वप्नों का शुभाशुभ भावी फल श्रुतकेवली भद्रबाहु ने बताया था कि आने वाले समय में धर्म एवं समाज की कैसी हानि होगी। प्राचीन चरित्रग्रन्थों में भी राजा आदि तथा अन्य चरित्र पात्रों के स्वप्न आदि की घटनाएँ प्रायः सुना करते हैं । इन सब घटनाओं को एकसूत्र में जोड़ने पर फिर वही प्रश्न सामने आता है कि वास्तव में यह स्वप्न है क्या ? क्यों आता है ? और कैसे इनके माध्यम से भविष्य के शुभाशुभ की सूचना हमारे मस्तिष्क तक पहुंचती है ? स्वप्न का दर्शन क्या है ?विज्ञान क्या है ? जो बातें जागते में हम नहीं जान पाते वे स्वप्न में कैसे हमारे मस्तिष्क में आ जाती हैं ? स्वप्न कब, क्यों आते हैं ? ___ स्वप्न के विषय में यही जिज्ञासा ढाई हजार वर्ष पूर्व महान् ज्ञानी गणधर गौतम के हृदय में उठी और भगवान महावीर से उन्होंने समाधान पूछा भगवन् ! स्वप्न कब आता है ? क्या सोते हुए स्वप्न देखा जाता है, या जागते हुए ? अथवा जागृत और सुप्त अवस्था में ? भगवान ने उत्तर दिया गौतम ! न तो जीव सुप्त अवस्था में स्वप्न देखता है, न जागृत अवस्था में। किन्तु कुछ सुप्त और कुछ जागृत अर्थात् अर्धनिद्रित अवस्था में स्वप्न देखता है। जागते हुए आँखें खुली रहती हैं, चेतना चंचल रहती है इसलिए स्वप्न आ नहीं सकता । गहरी नींद में जब स्नायु तन्तु पूर्ण शिथिल हो जाते हैं, अन्तर्मन (अचेतन मन) भी पूर्ण विश्राम करने लगता है, वह गति-हीन-सा हो जाता है उस दशा में भी स्वप्न नहीं आते, किन्तु जब मन कुछ थक जाता है, आँखें बन्द हो जाती हैं, चेतना की बाह्य प्रवृत्तियाँ रुक जाती हैं और अन्तर्जगत भाव-लोक में उसकी गति होती रहती है, वह अवस्था-जिसे अर्धनिद्रित अवस्था कहा जाता है-उसी समय में स्वप्न आते हैं। प्रायः देखा जाता है कि स्वस्थ मनुष्य जो गहरी नींद सोता है, स्वप्न बहुत कम देखता है। अस्वस्थ मनुष्य चाहे शारीरिक दृष्टि से अस्वस्थ हो या मानसिक दृष्टि से वही अधिक और बार-बार स्वप्न देखता है और उसके स्वप्न प्रायः निरर्थक ही होते हैं। प्राचीन आयुर्वेद के अनुसार जब इन्द्रियां अपने विषय से निवृत्त होकर शांत हो जाती हैं, अर्थात् इन्द्रियों की गति बन्द हो जाती है, और मन उन विषयों में शब्द-रूप-रस-गन्ध-स्पर्श में लगा रहता है, उस समय मनुष्य स्वप्न देखता है सर्वेन्द्रियव्युपरतो मनोऽनुपरतं यदा। विषयेभ्यस्तदा स्वप्नं नानारूपं प्रपश्यति ॥ शरीर व मन की इस दशा को ही आगमों की भाषा में यों बताया है-सुत्त जागरमाणे सुविणं पासईसुप्त-जागृत अवस्था में स्वप्न देखता है। स्वप्न मनोविज्ञान : स्वप्न क्यों आते हैं, इस प्रश्न पर विचार करने से अनेक कारण हमारे सामने आते हैं । जैन-दर्शन के अनुसार स्वप्न का मूल कारण है-दर्शन मोहनीयकर्म का उदय । दर्शन मोह मन की राग एवं द्वेषात्मक वृत्तियों का सूचक है। मन में जब राग तथा द्वेष का स्पन्दन होता है। तो चित्त में चंचलता उत्पन्न होती है, शब्दादि विषयों से सम्बन्धित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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