Book Title: Swapnashastra Ek Mimansa
Author(s): Mishrimalmuni
Publisher: Z_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf

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Page 12
________________ ४६४ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड HHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHH स्वप्नों पर विचार करता रहा । पर, कुछ भी समझ में नहीं आया । प्रात: पाटलिपुत्र में आचार्य भद्रबाहु पधारे । अवसर देखकर राजा ने उनसे अर्थ पूछना चाहा । आचार्यश्री ने जो अर्थ बताया उस आधार पर बने प्रन्थ का नाम 'व्यवहारचूलिका' है। उसमें वर्णित स्वप्नार्थ इस प्रकार हैं (१) प्रथम स्वप्न-कल्पवृक्ष की शाखा टूटी हुई देखी। अर्थ-अब राजा लोग संयम नहीं लेंगे। (२) दूसरा स्वप्न-असमय में सूर्य को अस्त होते देखा । अर्थ-अब के जन्मे हुओं को केवलज्ञान की प्राप्ति नहीं होगी। (३) तीसरा स्वप्न-चन्द्रमा चालनी बन गया। अर्थ-जैन शासन विभिन्न सम्प्रदायों तथा समाचारियों में विभाजित हो जायेगा । (४) चौथा स्वप्न-अट्टहास करते भूत-भूतनी नाचते देखा। अर्थ-स्वच्छन्दाचारी और ढोंगी साधुओं का सम्मान बढ़ेगा। (५) पांचवां स्वप्न-बारह फन वाला काला सर्प देखा। अर्थ-बारह-बारह वर्ष का दुष्काल पड़ेगा। साधुओं को आहार मिलना कठिन हो जायेगा। ऐसी स्थिति में स्वाध्याय के अभाव में ज्ञान विलुप्त हो जायेगा। (६) छठा स्वप्न-देवताओं का विमान वापिस लौटते देखा । अर्थ-विशिष्ट लब्धियाँ विलुप्त हो जायेंगी। (७) सातवां स्वप्न-कचरे के ढेर पर (अकूरड़ी) कमल खिला हुआ देखा। अर्थ-जैन शासन की बागडोर ऐसे व्यक्तियों के हाथ में आ जायेगी जो उसमें सौदाबाजी चलायेंगे । (८) आठवां स्वप्न-पतंगियों को उद्योत करते देखा । अर्थ-धर्म आडम्बरों में ही शेष रह जायेगा। (8) नवा स्वप्न-तीन दिशाओं में समुद्र सूखा हुआ है। केवल दक्षिण दिशा में थोड़ा-सा जल है, वह भी मटमैला-सा। अर्थ-जहाँ तीर्थंकरों का बिहार हुआ है । वहां प्रायः धर्म का ह्रास होगा । दक्षिण दिशा में थोड़ा-सा धर्म का प्रचार रहेगा। (१०) दशवाँ स्वप्न-सोने के थाल में कुत्ता खीर खा रहा था। अर्थ-उत्तम पुरुष श्रीहीन होंगे। पापाचारी आनन्द करेंगे । (११) ग्यारहवां स्वप्न-हाथी पर बन्दर बैठा देखा। अर्थ-लौकिक और लोकोत्तर पक्षों में अधम व्यक्तियों-आचारहीन व्यक्तियों को सम्मान व उच्चपद मिलेगा। (१२) बारहवां स्वप्न-समुद्र मर्यादा छोड़कर भागा जा रहा था। अर्थ-उत्तम-उत्तम व्यक्ति भी पेट पालने के लिए मर्यादाहीन हो जायेंगे । (१३) तेरहवाँ स्वप्न-एक विशाल रथ में छोटे-छोटे बछड़े जुते हुए थे। अर्थ-छोटे-छोटे बालक संयम के रथ को खींचेंगे । (१४) चौदहवां स्वप्न-महामूल्य रत्न को तेजहीन देखा।। अर्थ साधुओं का परस्पर के कलह, अविनय आदि के कारण चारित्र का तेज घट जायेगा। (१५) पन्द्रहवां स्वप्न-राजकुमार को बैल की पीठ पर चढ़ा देखा। अर्थ-क्षत्रिय आदि वर्ग जिन धर्म छोड़कर मिथ्यात्व के पीछे लगेंगे । सज्जनों को छोड़कर दुर्जनों का विश्वास करेंगे। (१६) सोलहवां स्वप्न-दो काले हाथियों को युद्ध करते देखा। अर्थ-पिता-पुत्र और गुरु-शिष्य परस्पर विग्रह करेंगे । अतिवृष्टि और अनावृष्टि होगी। ये स्वप्न प्रायः प्रतीकात्मक हैं और इनका सम्बन्ध भविष्यकाल से जोड़ा गया है । इन स्वप्नों का वर्णन व्यवहारचूलिका नामक ग्रन्थ में मिलता है। भगवान महावीर के बस स्वप्न भगवान महावीर के दस स्वप्न भी काफी प्रसिद्ध हैं और उनका सम्बन्ध प्रायः उन्हीं के भावी जीवन से जोड़ा गया है। वे स्वप्न इस प्रकार हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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