Book Title: Swadhyaya ki Maniya Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_4_001687.pdf View full book textPage 2
________________ आवश्यक अंग है। उत्तराध्ययनसूत्र में स्वाध्याय को आन्तरिक.तप का एक प्रकार बताते हुए उसके पाँचों अंगों एवं उनकी उपलब्धियों की विस्तार से चर्चा की गई है। बृहत्कल्पभाष्य में स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि – 'नवि अस्थि न वि अ होही, सज्झाय समं तपो कम्म' अर्थात् स्वाध्याय के समान दूसरा तप न अतीत में कोई था, न वर्तमान में कोई है और न भविष्य में कोई होगा। इस प्रकार जैन परम्परा में स्वाध्याय को आध्यात्मिक साधना के क्षेत्र में विशेष महत्त्व दिया गया है। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है कि स्वाध्याय से ज्ञान का प्रकाश प्राप्त होता है जिससे समस्त दुःखों का क्षय हो जाता है। वस्तुतः स्वाध्याय ज्ञान प्राप्ति का एक महत्त्वपूर्ण उपाय है। कहा भी है नाणस्स सव्यस्स पगासणाए अन्नाण-मोहस्स विवज्जणाए। रागस्स दोसस्स य संखएणं एगन्तसोक्खं समुवेइ मोक्खं ।। तस्सेस मग्गो गुरु-विद्धसेवा विवज्जणा बालजणस्स दूरा। सज्झाय-एगन्तनिसेवणा य सुत्तऽत्थसंचिन्तणया धिई य।। - उत्त०, ३२/२-३. अर्थात् सम्पूर्ण ज्ञान के प्रकाशन से, अज्ञान और मोह के परिहार से, राग-द्वेष के पूर्ण क्षय से-जीव एकान्त सुख-रूप मोक्ष को प्राप्त करता है। गरुजनों और वृद्धों की सेवा करना, अज्ञानी लोगों के सम्पर्क से दूर रहना, सूत्र और अर्थ का चिन्तन करना, स्वाध्याय करना और धैर्य रखना - यह दुःखों से मुक्ति का उपाय है। स्वाध्याय का अर्थ "स्वाध्याय' शब्द का सामान्य अर्थ है - स्व का अध्ययन। वाचस्पत्यम् में स्वाध्याय शब्द की व्याख्या दो प्रकार से की गयी है -- (१) स्व+अधि+ईण, जिसका तात्पर्य है कि स्व का अध्ययन करना। दूसरे शब्दों में- स्वाध्याय आत्मानुभूति है, अपने अन्दर झांक कर अपने आप को देखना है। वह स्वयं अपना अध्ययन है। मेरी दृष्टि में अपने विचारों, वासनाओं व अनुभूतियों को जानने व समझने का प्रयत्न ही स्वाध्याय है। वस्तुतः वह अपनी आत्मा का अध्ययन ही है, आत्मा के दर्पण में अपने को देखना है। जब तक स्व का अध्ययन नहीं होगा, व्यक्ति अपनी वासनाओं एवं विकारों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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