Book Title: Swadhyaya ki Maniya Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_4_001687.pdf View full book textPage 5
________________ ९८ द्वारा जब विषय स्पष्ट हो जाता, तब व्यक्ति को धर्मोपदेश या अध्ययन का अधिकार मिलता है। स्वाध्याय के लाभ उत्तराध्ययनसूत्र में यह प्रश्न उपस्थित किया गया है कि स्वाध्याय से जीव को क्या लाभ है? इसके उत्तर में कहा गया है कि स्वाध्याय से ज्ञानावरणकर्म का क्षय होता है। दूसरे शब्दों में आत्मा मिथ्याज्ञान का आचरण दूर कर सम्यक्-ज्ञान का अर्जन करता है। स्वाध्याय के इस सामान्य लाभ की चर्चा के साथ उत्तराध्ययनसूत्र में स्वाध्याय के पाँचों अंगों - वाचना, प्रतिप्रच्छना, धर्मकथा आदि के अपने-अपने क्या लाभ होते हैं--- इसकी भी चर्चा की गयी है, जो निम्न रूप में पायी जाती है -- भन्ते! वाचना (अध्ययन-अध्यापन) से जीव को क्या प्राप्त होता है? ___ वाचना से जीव कर्मों की निर्जरा करता है, श्रुतज्ञान की आशातना के दोष से दूर रहने वाला वह तीर्थ-धर्म का अवलम्बन करता है - गणधरों के समान जिज्ञास शिष्यों को श्रुत प्रदान करता है। तीर्थ-धर्म का अवलम्बन लेकर कर्मों की महानिर्जरा करता है और महापर्यवसान (संसार का अन्त) करता है। भन्ते! प्रतिप्रच्छना से जीव को क्या प्राप्त होता है? । प्रतिप्रच्छना (पूर्वपठित शास्त्र के सम्बन्ध में शंकानिवृत्ति के लिए प्रश्न करना) से जीव सूत्र, अर्थ और तदुभय - दोनों से सम्बन्धित कांक्षामोहनीय (संशय) का निराकरण करता है। भन्ते! परावर्तना से जीव को क्या प्राप्त होता है? परावर्तना से अर्थात् पठित पाठ के पुनरावर्तन से व्यंजन (शब्द-पाठ) स्थिर होता है और जीव पदानुसारिता आदि व्यंजना-लब्धि को प्राप्त होता है। भन्ते! अनुप्रेक्षा से जीव को क्या प्राप्त होता है? अनुप्रेक्षा से अर्थात् सूत्रार्थ के चिन्तन-मनन से जीव आयुष्य-कर्म को छोड़कर शेष ज्ञानावरणादि सात कर्मों की प्रकृतियों के प्रगाढ़ बन्धन को शिथिल करता है, उनकी दीर्घकालीन स्थिति को अल्पकालीन करता है, उनके तीव्र रसानुभाव को मन्द करता है, साथ ही बहुकर्म-प्रदेशों को अल्प-प्रदेशों में परिवर्तित करता है, आयुष्यकर्म का बन्ध कदाचित् करता है, कदाचित् नहीं भी करता है, असातावेदनीय-कर्म का पुनः पुनः उपचय नहीं करता है, संसारं अटवी अनादि एवं अनन्त है, दीर्घमार्ग से युक्त है, जिसके नरकादि गतिरूप चार अन्त (अवयव) हैं, उसे शीघ्र ही पार करता है। भन्ते! धर्मकथा (धमोपदेश) से जीव को क्या प्राप्त होता है? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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